
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट विस्तार की अटकलें अब जोर पकड़ रही हैं। वर्तमान में पाँच कैबिनेट पद खाली हैं और इन रिक्तियों को भरने के लिए विधायकों में जोरदार हलचल देखने को मिल रही है। मुख्यमंत्री से मिलने का सिलसिला तेज हो गया है, जिसमें विधायक अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री धामी ने इस पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार होगा।
क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों का गणित
उत्तराखंड के मंत्रिमंडल में यह रिक्तियाँ प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे और चंदन राम दास के निधन के बाद पैदा हुई हैं। इन पाँच खाली पदों को भरने के लिए भाजपा नेतृत्व को क्षेत्रीय और जातीय दोनों समीकरणों को साधने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। सूत्रों के मुताबिक, देहरादून, हरिद्वार, पिथौरागढ़ और नैनीताल जैसे महत्वपूर्ण जिलों से एक-एक विधायक को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है।
इस दौड़ में कई बड़े और अनुभवी नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं, जिनमें मदन कौशिक, खजान दास, विनोद चमोली, मुन्ना सिंह चौहान, बंशीधर भगत और अरविंद पांडेय शामिल हैं। इन सभी नेताओं का अपना-अपना जनाधार और राजनीतिक प्रभाव है, जो मुख्यमंत्री के लिए अंतिम फैसला लेना और भी मुश्किल बना रहा है। विधायकों का मुख्यमंत्री से मिलना यह दर्शाता है कि हर कोई इस मौके को भुनाना चाहता है, लेकिन अंतिम निर्णय पूरी तरह से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व और मुख्यमंत्री धामी पर निर्भर करेगा।
भाजपा विधायक दिलीप सिंह रावत ने भी इस बात को स्वीकार किया कि कैबिनेट विस्तार का फैसला मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। उन्होंने कहा, “मैं अपने क्षेत्र के विकास कार्यों के लिए नियमित रूप से मुख्यमंत्री से मिलता रहता हूँ। कैबिनेट विस्तार का निर्णय पूरी तरह मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में है। वे जिसे चाहें, जिम्मेदारी सौंप सकते हैं।” इस तरह के बयान बताते हैं कि विधायक भले ही अपनी दावेदारी पेश कर रहे हों, लेकिन वे पार्टी के अनुशासन और नेतृत्व के फैसले का सम्मान करते हैं।
हाईकमान की मुहर और मुख्यमंत्री का दिल्ली दौरा
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने भी कैबिनेट विस्तार को लेकर संकेत दिए हैं। उन्होंने बताया कि हाईकमान के साथ चर्चा अंतिम चरण में है और जल्द ही विस्तार की घोषणा हो सकती है। इस बात को बल तब मिला जब मुख्यमंत्री धामी हाल ही में दिल्ली के दौरे पर गए थे। हालाँकि, धामी ने अपने दिल्ली दौरे को “निजी” बताया और कहा कि विस्तार को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह दिल्ली दौरा महज एक औपचारिकता थी और विस्तार को लेकर सारी चर्चाएँ हो चुकी हैं।

सूत्रों का दावा है कि होली के बाद मंत्रिमंडल विस्तार की घोषणा हो सकती है। यह समय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न सिर्फ खाली पदों को भरेगा, बल्कि कुछ मंत्रियों के विभागों में फेरबदल की भी संभावना है। मुख्यमंत्री धामी पर पाँच मंत्रालयों का अतिरिक्त बोझ भी है, जिससे प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में, इन पदों को भरना न केवल राजनीतिक संतुलन के लिए, बल्कि सरकार के कुशल कामकाज के लिए भी आवश्यक है।
यह कैबिनेट विस्तार मुख्यमंत्री धामी के लिए एक अग्निपरीक्षा साबित होगा। उन्हें न केवल अपने मंत्रिमंडल को मजबूत करना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि पार्टी के भीतर कोई असंतोष न फैले। जातीय, क्षेत्रीय और राजनीतिक संतुलन को साधते हुए सही उम्मीदवारों का चयन करना एक बड़ी चुनौती होगी। इस विस्तार से यह भी पता चलेगा कि मुख्यमंत्री अपनी टीम में किस तरह के नेताओं को प्राथमिकता देते हैं और उनकी सरकार की आगे की रणनीति क्या होगी।
कुल मिलाकर, उत्तराखंड की राजनीति में इन दिनों हलचल तेज है। हर कोई कैबिनेट विस्तार के फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहा है, जो राज्य की राजनीतिक दिशा को तय करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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