
ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ई. के. पलानीस्वामी ने बृहस्पतिवार को मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) पर तीखा प्रहार करते हुए सवाल किया कि क्या उन्हें द्रविड़ विचारक और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री सी. एन. अन्नादुरई का नाम लेने का नैतिक अधिकार है।
यह बयान मुख्यमंत्री स्टालिन के उस तंज के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि “अन्नाद्रमुक ने अन्ना का नाम गिरवी रख दिया है।” इसके जवाब में पलानीस्वामी ने एक बयान जारी कर कहा, “हम अन्ना को एक दिन, एक पल के लिए भी नहीं छोड़ सकते। वह केवल हमारी पार्टी के नाम और ध्वज में नहीं, बल्कि हमारे रक्त में भी हैं।”
उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री स्टालिन की अगुवाई वाली द्रमुक सरकार ने चार वर्षों में राज्य के लोगों के लिए कुछ भी ठोस कार्य नहीं किया। पलानीस्वामी ने दावा किया कि अन्नाद्रमुक की स्थापना वर्ष 1972 में दिवंगत नेता एम. जी. रामचंद्रन (एमजीआर) ने इसलिए की थी क्योंकि करुणानिधि ने अन्ना की विचारधारा को “दफना दिया” और द्रमुक को “लूट का पारिवारिक अड्डा” बना दिया।
पलानीस्वामी ने कहा कि द्रमुक की परिवारवादी राजनीति अन्नादुरई की उस सोच के विपरीत है, जिसमें सामाजिक न्याय, जनकल्याण और समानता की बात की गई थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्टालिन की नीति ‘कमीशन, कलेक्शन और भ्रष्टाचार’ पर आधारित है, इसलिए उन्हें अन्ना और पेरियार के नाम पर अन्नाद्रमुक को उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं है।
वहीं, तिरुपत्तूर में एक सरकारी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री स्टालिन ने अन्नाद्रमुक पर निशाना साधते हुए कहा था कि “जिन्होंने अपनी पार्टी को गिरवी रख दिया है, उन्हें कल तमिलनाडु को गिरवी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।” उन्होंने जनता से अपील की कि वे अन्नाद्रमुक और भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों।
पलानीस्वामी ने दावा किया कि 2026 के विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक की सरकार बनेगी और वह राज्य में “शांति, समृद्धि, विकास और तमिलनाडु के अधिकारों” को पुनः स्थापित करेगी, जिन्हें द्रमुक सरकार ने छीन लिया है।
ज्ञात हो कि सी. एन. अन्नादुरई, जिन्हें अन्ना के नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे और 1967 से 1969 तक इस पद पर रहे। उनका निधन तीन फरवरी, 1969 को हुआ था।