
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची में सुधार को लेकर छिड़ी बहस पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा शुरू की गई स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया को रोकने से साफ इनकार करते हुए आयोग को बड़ी राहत दी है।
सुप्रीम कोर्ट बोला- प्रक्रिया नहीं, समय है चुनौती
सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए की जा रही गहन जांच प्रक्रिया में कोई त्रुटि नहीं है। कोर्ट ने कहा, “आपकी प्रक्रिया में कोई समस्या नहीं, लेकिन समय को लेकर सवाल जरूर हैं।”
कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि SIR की शुरुआत इतने विलंब से क्यों की गई, जबकि इस प्रक्रिया को चुनाव से महीनों पहले आरंभ किया जाना चाहिए था।
याचिकाकर्ताओं की आपत्ति
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों ने यह तर्क दिया कि चुनाव से कुछ ही महीने पहले 30 दिनों के भीतर पूरी मतदाता सूची का पुनरीक्षण करना न केवल भेदभावपूर्ण है बल्कि मनमाना भी है। उन्होंने यह भी कहा कि आयोग आधार कार्ड को मान्यता नहीं दे रहा और माता-पिता के दस्तावेज मांग रहा है, जिससे कई नागरिकों को असुविधा हो सकती है।
आयोग की सफाई
चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, “हम एक संवैधानिक संस्था हैं और मतदाताओं से हमारा सीधा संबंध है। यदि मतदाता नहीं रहेंगे तो हमारा अस्तित्व भी नहीं रहेगा।” उन्होंने स्पष्ट किया कि आयोग की मंशा किसी को मतदाता सूची से बाहर करने की नहीं है, जब तक कानून द्वारा ऐसा करने का निर्देश न हो।
चुनाव आयोग ने कहा कि वह धर्म, जाति या अन्य किसी व्यक्तिगत आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता और पूरी प्रक्रिया पारदर्शी व निष्पक्ष है।
क्यों जरूरी है SIR
पिछले महीने चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची में सुधार का आदेश दिया था। आयोग का कहना है कि पिछले 20 वर्षों में हुए नाम जोड़ने और हटाने की प्रक्रिया से डुप्लीकेट एंट्रीज की संभावना बढ़ गई है, जिसे विशेष पुनरीक्षण के माध्यम से दूर किया जा सकता है।
हालांकि इस कदम को विपक्षी दलों—विशेष रूप से कांग्रेस और राजद—ने तीखी आलोचना का निशाना बनाया है। उनका कहना है कि यह कदम चुनाव के पहले मतदाता वर्ग को प्रभावित करने की कोशिश है।
अगली सुनवाई 28 जुलाई को
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 जुलाई की तिथि तय की है। तब यह देखा जाएगा कि समय और प्रक्रिया के बीच चुनाव आयोग की तैयारी कितनी न्यायसंगत है।

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