
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संरक्षक और वरिष्ठ नेता शिबू सोरेन का सोमवार, 4 अगस्त 2025 को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे और बीते एक महीने से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। जून के अंतिम सप्ताह में उन्हें किडनी संबंधी जटिलताओं के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान वे वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। उनके निधन की जानकारी उनके पुत्र और झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर साझा की।
शिबू सोरेन का जीवन आदिवासी संघर्ष, जन आंदोलन और राजनीतिक धैर्य की मिसाल रहा। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। वे संथाल जनजाति से आते थे। युवावस्था में ही उन्होंने अपने समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू कर दिया था। 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने ‘संथाल नवयुवक संघ’ की स्थापना की और 1972 में ए.के. रॉय और बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव रखी।

शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन को एक जनांदोलन का स्वरूप दिया। उन्होंने आदिवासियों की ज़मीन बचाने, विस्थापन रोकने और अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए कई बार प्रशासन और राजनीतिक सत्ता को चुनौती दी। 1980 में वे पहली बार दुमका से लोकसभा सांसद चुने गए और उसके बाद लंबे समय तक संसद में झारखंड की आवाज बने रहे। वे तीन बार केंद्र में कोयला मंत्री और तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे (2005, 2008–2009, 2009–2010)।
हालांकि उनका राजनीतिक जीवन कई विवादों से भी जुड़ा रहा। 1994 में उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया और जेल भी जाना पड़ा। 1975 के चिरूडीह कांड और 1974 की हिंसा के मामलों में भी वे आरोपी रहे, हालांकि कुछ मामलों में बाद में उन्हें बरी कर दिया गया।

राजनीतिक जीवन के अंतिम वर्षों में वे राज्यसभा सदस्य के रूप में सक्रिय थे और INDIA गठबंधन में झामुमो का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उनकी राजनीतिक विरासत और झारखंड आंदोलन में योगदान को लेकर राज्यभर में गहरा शोक व्यक्त किया जा रहा है। उनके निधन से झारखंड और पूरे देश की आदिवासी राजनीति में एक युग का अंत हो गया है।
सरकार ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए राज्य में राजकीय शोक की घोषणा की है। उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी।

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