
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 20 सूत्री शांति योजना पर इजरायली कैबिनेट की मुहर लगने के बाद गाजा में युद्धविराम लागू हो गया है, जिससे क्षेत्र में अस्थाई राहत मिली है। हालांकि, इस महत्वाकांक्षी योजना के बावजूद, पश्चिम एशिया में स्थायी शांति की स्थापना पर संदेह का साया मंडरा रहा है, क्योंकि योजना के क्रियान्वयन के अगले चरणों में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और हमास की मूलभूत मांगें टकरा सकती हैं।
शांति योजना का पहला चरण: एक नाजुक शुरुआत
ट्रंप की शांति योजना को तीन चरणों में विभाजित किया गया है। जिस पहले चरण पर इजरायल और हमास सहमत हुए हैं, वह तुलनात्मक रूप से आसान है, जिसमें मानवीय और बंधक विनिमय पर ध्यान केंद्रित किया गया है:
इजरायली सेना की वापसी: गाजा के 47 प्रतिशत क्षेत्र से इजरायली हमले रुकेंगे और सेना पीछे हटेगी।
कैदियों की रिहाई: इजरायल आतंकी हमलों और अन्य आरोपों में सजा काट रहे करीब 250 फलस्तीनी कैदियों और हिरासत में लिए गए 1700 गाजा निवासियों को रिहा करेगा।
शवों का आदान-प्रदान: हमास 28 इजरायली बंधकों की पार्थिव देह सौंपेगा, जबकि इजरायल अपनी हिरासत में मारे गए गाजा के 15 लोगों के पार्थिव शरीर हमास को सौंपेगा।

हालांकि, इस पहले चरण में भी हमास की मांग पर रिहा होने वाले कैदियों के नामों और संख्या को लेकर रुकावटें खड़ी होने की आशंका है, जिसके बाद दूसरे और तीसरे चरण की कठिन सौदेबाजी शुरू होगी।
स्थायी शांति की राह में विसैन्यीकरण और प्रशासन का पेंच
शांति योजना के असली पेंच दूसरे और तीसरे चरण में हैं, जो गाजा के पूरी तरह विसैन्यीकरण और उसके भविष्य के प्रशासन से संबंधित हैं:
विसैन्यीकरण: हथियार और सुरंगों का जाल
योजना के अनुसार, गाजा पट्टी का पूर्ण विसैन्यीकरण होना है। इसका मतलब है हर तरह के सैनिक, आतंकी और आक्रामक ढांचे को ढहाया जाना, जिसमें हमास की सुरंगों का विशाल जाल भी शामिल है, जिसका उपयोग वे रॉकेट, हथियार और गोला-बारूद रखने के लिए करते थे।
हमास की शर्त: अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के आकलन के अनुसार, हमास ने युद्ध के दौरान करीब 15 हजार नए लड़ाकों की भर्ती की है। इजरायल चाहता है कि ये सभी हथियार डालें और भविष्य में लड़ाई न करने का प्रण लें। लेकिन हमास की शर्त रही है कि वह स्वतंत्र फलस्तीन राष्ट्र की स्थापना होने के बाद ही हथियार डालेगा, जबकि वह इजरायल के अस्तित्व को भी स्वीकार नहीं करता।
गाजा का भावी प्रशासन
शांति योजना के तहत गाजा का प्रशासन एक शांति बोर्ड की देखरेख में फलस्तीनी विशेषज्ञों की एक अस्थायी समिति संभालेगी।
ट्रंप की भूमिका: इस शांति बोर्ड की अध्यक्षता स्वयं ट्रंप करेंगे, जिसमें पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर भी प्रमुख भूमिका निभाएंगे।
फलस्तीनी प्राधिकरण: फलस्तीनी प्राधिकरण में सुधार करने के बाद गाजा का प्रशासन उसे सौंप दिया जाएगा, परंतु उसमें हमास की प्रत्यक्ष या परोक्ष कोई भूमिका नहीं होगी। हमास के जो सदस्य शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को स्वीकार करेंगे, उन्हें अभयदान देकर दूसरे देशों में भेज दिया जाएगा।
लेकिन, इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भले ही ट्रंप की योजना को पूरी तरह स्वीकार कर लिया हो, पर वे गाजा का प्रशासन फलस्तीनी प्राधिकरण को देने के सख्त खिलाफ हैं।

नेतन्याहू की बाधा: फलस्तीनी राष्ट्र का स्वप्न
ट्रंप गाजा युद्धविराम को पश्चिम एशिया में स्थायी शांति का पहला कदम बताते हैं, पर वे भी जानते हैं कि फलस्तीनियों को उनका देश मिले बिना यहां कोई शांति स्थायी नहीं हो सकती।
टू-स्टेट समाधान: पिछली सदी के अंत तक दो-राष्ट्र समाधान संभव लगता था, लेकिन नेतन्याहू के सत्ता संभालने के बाद अलग फलस्तीनी राष्ट्र की संभावना ‘सपने’ में बदल गई है। फलस्तीनी चाहते हैं कि पश्चिमी किनारे और गाजा में उनका देश बने, जिसकी राजधानी पूर्वी यरूशलम हो।
पश्चिमी किनारे पर नियंत्रण: पश्चिमी किनारे पर फलस्तीनी प्राधिकरण का शासन होने के बावजूद, इजरायल ने सुनियोजित रणनीति के तहत वहां यहूदी बस्तियों का जाल बिछा दिया है, जिनमें लगभग सात लाख यहूदी बसते हैं।
पश्चिमी किनारे की मात्र 18 प्रतिशत भूमि पर ही फलस्तीनी प्राधिकरण का शासन है।
शेष 60 प्रतिशत भूमि पर इजरायली शासन है, जो जानबूझकर किया गया लगता है ताकि फलस्तीनी शहर इजरायल के विरुद्ध एकजुट न हो सकें।
यही कारण है कि नेतन्याहू पश्चिमी किनारे और गाजा में एक फलस्तीनी सरकार नहीं बनने देना चाहते, ताकि सुरंगों का जाल जैसी चुनौतियां दोबारा न खड़ी हों।
अस्तित्व की चुनौतियां: दोनों पक्षों के सामने बड़ी परीक्षा
फिलहाल, नेतन्याहू और हमास दोनों के पास ट्रंप की शांति योजना के लिए सहमत होने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था। नेतन्याहू शांति नोबेल की आस लगाए ट्रंप को नाराज नहीं कर सकते थे, और हमास के पास भी बंधकों को छिपाने या सहानुभूति बटोरने की गुंजाइश नहीं बची थी।

शांति कायम होने के बाद दोनों के सामने अस्तित्व की चुनौतियां हैं:–
नेतन्याहू के समक्ष चुनौतियां: उन्हें अपनी सरकार बचानी है, हमास के हमले को रोकने में हुई सुरक्षा चूक की जांच से बचना है और भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने से खुद को बचाना है।
हमास के समक्ष चुनौतियां: उसे सत्ता से बाहर रहते हुए भी अपना प्रभाव बनाए रखना है। इजरायली हमलों में मारे गए 67 हजार से अधिक लोगों के परिवारों का इजरायल विरोधी रोष उन्हें संगठन खड़ा करने की आधारभूमि देगा।
इजरायल ने भले ही हमास और हिजबुल्ला के फनों को कुचल दिया हो, पर वह उनके उद्देश्य के लिए बढ़ती सहानुभूति की लहर को नहीं थाम पाया है। संयुक्त राष्ट्र के जांच आयोग ने उस पर जनसंहार का आरोप लगाया है, और ब्रिटेन, फ्रांस तथा कनाडा जैसे पारंपरिक मित्र देशों ने उसकी मर्जी के खिलाफ फलस्तीन को मान्यता दे दी है। यह लड़ाई में उसकी साख की हार को दर्शाती है, जो गाजा में स्थायी शांति की राह को और भी मुश्किल बनाती है।

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