
फर्जी खबरों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) से उत्पन्न ‘डीपफेक’ पर लगाम लगाने के लिए एक संसदीय समिति ने सरकार से ठोस कानून और तकनीकी समाधान विकसित करने का आग्रह किया है। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट हाल ही में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को सौंपी है, जिसे संसद के अगले सत्र में पेश किया जाएगा।
फर्जी खबरें फैलाने वालों पर हो कार्रवाई
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि सरकार को उन व्यक्तियों और संस्थानों की पहचान करनी चाहिए जो फर्जी खबरें फैलाते हैं, और उन पर मुकदमा चलाने के लिए सख्त कानून बनाना चाहिए। समिति ने कहा है कि इस समस्या से निपटने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और अन्य संबंधित विभागों के बीच बेहतर समन्वय जरूरी है।
एआई का इस्तेमाल और नियमन
समिति ने फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के लिए एआई के इस्तेमाल पर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जहाँ एआई का उपयोग प्रामाणिक सूचनाओं का पता लगाने के लिए किया जा सकता है, वहीं इसका दुरुपयोग गलत सूचनाएं फैलाने के लिए भी हो सकता है।

समिति ने एआई-जनरेटेड कंटेंट क्रिएटर्स के लिए लाइसेंसिंग की संभावना तलाशने और एआई-जनरेटेड वीडियो व अन्य सामग्री पर अनिवार्य रूप से लेबल लगाने की भी सिफारिश की है। हालाँकि, संसदीय समितियों के सुझाव सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होते, लेकिन सरकार अक्सर इन पर गंभीरता से विचार करती है, क्योंकि ये सुझाव संसद का प्रतिनिधित्व करते हैं।
डीपफेक से निपटने की तैयारी
समिति ने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने डीपफेक से संबंधित समस्याओं की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। वर्तमान में दो प्रमुख परियोजनाएं चल रही हैं: एक जिसमें ‘डीपफेक’ का उपयोग करके फर्जी भाषणों का पता लगाया जाएगा, और दूसरा डीपफेक वीडियो व तस्वीरों का पता लगाने के लिए सॉफ्टवेयर का डिजाइन और विकास। इन प्रयासों का उद्देश्य फर्जी सूचनाओं के इस बढ़ते खतरे से प्रभावी ढंग से निपटना है।

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