
हाल ही में नए आईफोन मॉडल को खरीदने के लिए शहरों में जुटी लंबी कतारों ने एक बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इस भीड़ को ‘जुनून’ और ‘नवाचार’ के प्रति प्रेम का प्रतीक मान रहे हैं, वहीं कुछ इसे ‘फिजूलखर्ची’ और ‘भटकाव’ का संकेत बता रहे हैं। यह बहस दिखावे, पीढ़ीगत सोच और भारत के आर्थिक विकास के कई पहलुओं को उजागर करती है।
‘क्रेज’ और ‘समझ’ का तर्क
कुछ लोगों का मानना है कि आईफोन के लिए लगी यह भीड़ कोई नकारात्मक घटना नहीं है। वे तर्क देते हैं कि इनमें से अधिकतर लोग युवा ‘कंटेंट क्रिएटर’ हैं, जिन्होंने अपने खुद के पैसों से फोन खरीदा है। उनके लिए, यह फोन सिर्फ एक गैजेट नहीं, बल्कि उनके काम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह फोन उनके हर काम में मदद करता है और उन्हें अपने क्षेत्र के सबसे बेहतरीन टूल को इस्तेमाल करने का मौका देता है। वे कहते हैं कि यह एक ‘क्रेज’ है, जो हर दौर में किसी न किसी चीज के लिए होता है, और इसमें कोई बुराई नहीं है।
वे इस भीड़ की तुलना उन लोगों से करते हैं, जो घंटों नाले की सफाई, कीचड़ की खुदाई या अपने नेताओं की एक झलक पाने के लिए इंतजार करते हैं। उनका मानना है कि आईफोन खरीदने वालों का कम से कम एक मकसद तो है। वे कहते हैं कि आज की युवा पीढ़ी अपने शौक पूरे करने के लिए दिन-रात मेहनत करती है, और अगर वे अपने कमाए पैसों से कुछ खरीदते हैं, तो उन्हें कोसना गलत है।
फिजूलखर्ची और नैतिक पतन का आरोप
दूसरी ओर, इस भीड़ को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की जा रही है। आलोचकों का कहना है कि यह एक ऐसी पीढ़ी है, जिसे अपने रोजगार और भविष्य की चिंता होनी चाहिए, लेकिन वे महंगे फोन खरीदने के लिए घंटों लाइन में लग रहे हैं। उनका मानना है कि यह युवाओं में बढ़ती अनैतिकता और अशिष्टता का संकेत है। वे सवाल उठाते हैं कि जब युवा बेरोजगारी और परीक्षाओं में असफल होने की शिकायत करते हैं, तो वे लाखों रुपये एक फोन पर कैसे खर्च कर सकते हैं?
इस तर्क के अनुसार, युवा उन पैसों का उपयोग अपने माता-पिता या जरूरतमंदों की मदद करने में कर सकते थे। आलोचक यह भी कहते हैं कि यह भीड़ दिखावा और टशन के लिए लगी है। वे इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि जिन युवाओं ने अभी तक अपने करियर में जगह नहीं बनाई है, वे भी अपने माता-पिता के पैसों या ईएमआई पर ऐसे महंगे फोन खरीदने के लिए पागल हैं। यह स्थिति इस सवाल को भी जन्म देती है कि क्या भारत सच में एक गरीब देश है, जब युवा इतने महंगे गैजेट्स पर इतना पैसा खर्च कर रहे हैं।

जीएसटी और कीमतों का भ्रम
यह समझना महत्वपूर्ण है कि जीएसटी घटने से भले ही फोन की कीमतें कम हुई हों, लेकिन आईफोन 17 की शुरुआती कीमत 80,000 रुपये से अधिक है, और कुछ मॉडल तो डेढ़ लाख रुपये तक के हैं। आलोचकों का कहना है कि जीएसटी में कमी के बावजूद यह फोन आम आदमी की पहुंच से बाहर है। इस तरह के महंगे गैजेट्स के लिए लगी कतारें दिखावा, भेड़चाल और उपभोक्तावाद की बढ़ती संस्कृति को उजागर करती हैं।
यह बहस हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। क्या हम एक ऐसे उपभोक्तावादी समाज की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ भौतिक सुख और दिखावा सफलता का पैमाना बन गए हैं? क्या युवाओं का यह जुनून उनकी रचनात्मकता और उद्यमिता का प्रतीक है, या यह सिर्फ एक भेड़चाल है जो उन्हें उनके वास्तविक लक्ष्यों से भटका रही है? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब शायद आने वाले समय में ही मिल पाएगा।

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