
उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद उनके ‘लापता’ होने को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने इस मामले पर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि धनखड़ ने इस्तीफा तो दिया है, लेकिन उसके बाद से वह सार्वजनिक रूप से दिखाई नहीं दिए हैं, जिससे कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।
गहलोत का सवाल: ‘पूरा देश चिंतित है’
गहलोत ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि धनखड़ ने शाम 5 बजे तक उपराष्ट्रपति के रूप में काम किया और रात 8 बजे इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद वे पूरी तरह से गायब हो गए। उन्होंने कहा, “न मीडिया, न सार्वजनिक मंच, न उपराष्ट्रपति भवन, किसी को नहीं पता कि वे कहां हैं।” गहलोत ने दावा किया कि उन्होंने खुद कई बार धनखड़ से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
उन्होंने कहा कि यह न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय है कि इतने बड़े पद से इस्तीफा देने के बाद कोई व्यक्ति अचानक लापता हो जाए। गहलोत ने आरोप लगाया कि सरकार इस मामले पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है, क्योंकि न तो धनखड़ ने अपने इस्तीफे का कारण बताया और न ही सरकार ने कोई स्पष्टीकरण दिया।
‘यह केवल जनता को भ्रमित करने का प्रयास’
गहलोत ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान पर भी तंज कसा, जिसमें उन्होंने धनखड़ के इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य को बताया था। गहलोत ने सवाल किया, “अगर स्वास्थ्य कारण है, तो क्या कोई मंत्री, प्रधानमंत्री या कोई अन्य नेता उनसे मिलने गए? उनका हालचाल लिया?” उन्होंने कहा कि यह सिर्फ जनता को भ्रमित करने का प्रयास है। गहलोत ने आशंका जताई कि धनखड़ किसी दबाव में थे, जिसके कारण यह नया ‘जुमला’ गढ़ा गया है। उन्होंने कहा कि पूरा राजस्थान और देश पूछ रहा है कि “हमारे धनखड़ जी कहां हैं?” और उनकी गुमशुदगी ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
रोहित पवार ने भी साधा निशाना
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) के विधायक रोहित पवार ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखी। उन्होंने भाजपा पर धनखड़ को छिपाने का आरोप लगाया। पवार ने कहा, “यह निश्चित रूप से एक सवाल है कि वह कहां हैं। वह हमारे उपराष्ट्रपति थे।” उन्होंने इस बात पर भी हैरानी जताई कि नए उपराष्ट्रपति के नामांकन के दौरान धनखड़ वहां मौजूद नहीं थे।
पवार ने कहा, “मुझे लगता है कि चुनाव होने तक वह दिखाई नहीं देंगे, क्योंकि उनके बयान चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं।” उन्होंने यह भी आशंका जताई कि धनखड़ कुछ “बहुत ही खतरनाक” कहना चाहते हैं, लेकिन भाजपा ने उन्हें छिपाकर रखा है।
धनखड़ के इस्तीफे के बाद से उनकी गुमशुदगी विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ हमलावर होने का एक नया मौका दे रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मामले पर क्या सफाई देती है और क्या यह मुद्दा आगामी राजनीतिक बहस में एक प्रमुख स्थान बना पाता है।

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