
झारखंड के शिक्षा मंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के वरिष्ठ नेता रामदास सोरेन के निधन की खबर ने पूरे राज्य को स्तब्ध कर दिया है। उनके निधन को राज्य की राजनीति और शिक्षा जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से लेकर विपक्षी नेताओं तक सभी ने गहरा दुख व्यक्त किया है और इसे झारखंड की राजनीति के लिए बड़ी क्षति बताया है।
झामुमो में शोक की लहर
झामुमो नेता मनोज पांडे ने रामदास सोरेन के निधन को गहरी क्षति करार देते हुए कहा कि, “पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन के बाद यह राज्य के लिए दूसरा बड़ा सदमा है। रामदास सोरेन एक जुझारू और क्रांतिकारी नेता थे, जिन्होंने शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा देने की ठानी थी। उनका निधन पार्टी और राज्य दोनों के लिए अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई असंभव है।” उन्होंने कहा कि सोरेन न केवल संघर्षशील नेता थे बल्कि अपने मिलनसार स्वभाव और शिक्षा सुधार के विज़न के लिए भी जाने जाते थे।

कांग्रेस ने जताया गहरा दुख
कांग्रेस नेता राजेश ठाकुर ने भी गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि, “रामदास सोरेन शिक्षकों और छात्रों के लिए समर्पित नेता थे। वे शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव लाने का प्रयास कर रहे थे। वे एक सीधे, सरल और ईमानदार इंसान थे जिनका योगदान झारखंड हमेशा याद रखेगा। उनके निधन से न केवल शिक्षा जगत बल्कि पूरा राज्य आहत है।”
सरकार के भीतर शोक की लहर
झारखंड सरकार में मंत्री इरफान अंसारी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट कर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। उन्होंने लिखा कि, “यह राज्य और शिक्षा जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। रामदास सोरेन बड़े ही व्यवहारिक और आदिवासी समाज के प्रख्यात नेता थे। मैं उनकी स्थिति पर लगातार नजर रख रहा था और डॉक्टरों से संपर्क में था, लेकिन अंततः यह संघर्ष हम हार गए।”
अंसारी ने आगे कहा कि उनके साथ बिताए गए पल सदा स्मरणीय रहेंगे। वे न केवल सहकर्मी थे बल्कि परिवार की तरह थे। “वे सरल स्वभाव के, कर्मठ और जनसेवा के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। इस दुःख की घड़ी में मैं उनके परिवार के साथ खड़ा हूं।”
शिक्षा सुधार की राह में अधूरी रह गईं पहलें
रामदास सोरेन को उनकी राजनीतिक पहचान के साथ-साथ शिक्षा सुधारक की छवि के लिए भी जाना जाता था। शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता बढ़ाने, शिक्षकों की समस्याओं के समाधान और छात्रों के लिए नई योजनाएं लागू करने की दिशा में कई प्रयास किए। वे राज्य में शिक्षा को अधिक व्यावहारिक और रोजगारपरक बनाने के लिए लगातार कार्यरत थे। उनके अचानक निधन से इन पहलों पर सवालिया निशान लग गए हैं और अब यह जिम्मेदारी सरकार और विभाग पर आ गई है कि उनकी अधूरी सोच को पूरा किया जाए।

राजनीतिक गलियारों में सन्नाटा
रामदास सोरेन के निधन से झारखंड की राजनीति में शोक का माहौल है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आदिवासी समाज में उनकी मजबूत पकड़ और शिक्षा जगत में उनके सुधारों की योजनाओं ने उन्हें अलग पहचान दिलाई थी। विपक्ष ने भी उनके योगदान को स्वीकारते हुए उनके निधन को राज्य के लिए बड़ा नुकसान बताया है।
परिवार और समर्थकों में शोक
उनके निधन की खबर फैलते ही उनके पैतृक गांव और विधानसभा क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। लोगों का कहना है कि सोरेन हमेशा आमजन से जुड़े रहे और शिक्षा के जरिए समाज को आगे बढ़ाने की सोच रखते थे।

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