
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन पर पूरे राजनीतिक जगत में शोक की लहर है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने सोमवार को उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा, “शिबू सोरेन के साथ हमारे घनिष्ठ संबंध थे। यह गहरे दुख की बात है कि वह अब हमारे बीच नहीं रहे। वे दलितों और आदिवासियों के महान नेता थे। हम उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मेरी ओर से उनके परिवार को संवेदनाएं हैं।”
लालू यादव ने शिबू सोरेन को सामाजिक न्याय और हाशिए के समाज के अधिकारों की लड़ाई का अग्रणी चेहरा बताया। उन्होंने कहा कि शिबू सोरेन ने जीवनभर आदिवासियों, वंचितों और पिछड़ों के लिए संघर्ष किया और उनके नेतृत्व में झारखंड को एक नई पहचान मिली।
झामुमो संरक्षक शिबू सोरेन, जिन्हें ‘दिशोम गुरु’ और ‘गुरुजी’ के नाम से जाना जाता था, का निधन 4 अगस्त को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हुआ। वह 81 वर्ष के थे और लंबे समय से किडनी की बीमारी और ब्रेन स्ट्रोक जैसी समस्याओं से जूझ रहे थे। जून के अंतिम सप्ताह से वे आईसीयू में भर्ती थे।
उनके निधन की जानकारी झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर साझा की। उन्होंने गहरे भावुक शब्दों में लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।” उनके इस संदेश ने राज्यभर में गहरा भावनात्मक माहौल बना दिया।
शिबू सोरेन के निधन पर बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने भी श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा, “वंचित समाज के उत्थान के लिए शिबू सोरेन जी का संघर्ष प्रेरणादायी रहा है। उनका निधन भारतीय राजनीति के लिए एक अपूरणीय क्षति है। ईश्वर पुण्यात्मा को शांति दें।”

जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि शिबू सोरेन केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन थे। उन्होंने कहा, “उन्होंने आदिवासी समाज को एकजुट कर उन्हें राजनीतिक ताकत दी और राष्ट्रीय पहचान दिलाई। उनका जाना सामाजिक चेतना की एक बड़ी क्षति है।”
शिबू सोरेन के निधन पर बिहार से झारखंड तक कई राजनीतिक दलों ने शोक व्यक्त किया है। उनकी विचारधारा, संघर्ष और नेतृत्व को याद करते हुए नेताओं ने कहा कि वे सदैव एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में याद किए जाएंगे।
ज्ञात हो कि शिबू सोरेन ने झारखंड राज्य के निर्माण में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे, साथ ही कई बार सांसद भी चुने गए। उनका राजनीतिक जीवन आदिवासी अधिकारों, सामाजिक न्याय और क्षेत्रीय अस्मिता की आवाज रहा।
उनके निधन से न केवल झारखंड, बल्कि देश की समूची क्षेत्रीय राजनीति ने एक ऐसा चेहरा खो दिया है, जिसने ज़मीनी संघर्ष से सत्ता के शिखर तक की यात्रा की और लाखों लोगों की आवाज़ को संसद तक पहुंचाया।

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