
गोरक्षपीठ के पूर्व पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ एक ऐसे संत थे, जिन्होंने अपना जीवन दो महान उद्देश्यों के लिए समर्पित कर दिया: सामाजिक समरसता और राम मंदिर आंदोलन। उनकी पुण्यतिथि हर साल सितंबर में मनाई जाती है, और इस साल यह अवसर और भी खास है क्योंकि यह उनकी 11वीं और उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 56वीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में 4 से 11 सितंबर तक साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें योगी आदित्यनाथ भी विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे।
सामाजिक समरसता के लिए उठाया ऐतिहासिक कदम
महंत अवेद्यनाथ ने उस समय सामाजिक समरसता का एक बेमिसाल उदाहरण पेश किया, जब समाज में अस्पृश्यता की जड़ें बहुत गहरी थीं। साल 1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में बड़े पैमाने पर हुए सामूहिक धर्मांतरण ने उन्हें बहुत व्यथित किया। इस घटना से चिंतित होकर, उन्होंने यह सुनिश्चित करने का संकल्प लिया कि उत्तर भारत में ऐसा न हो। उन्होंने काशी के डोमराजा के घर संतों के साथ भोजन किया, जो उस समय एक क्रांतिकारी कदम था। इस कदम ने समाज में गहरे पैठे भेदभाव को तोड़ने और सामाजिक समरसता का संदेश देने का काम किया। यही घटना उनके सक्रिय राजनीति में प्रवेश का कारण बनी और उनके जीवन का मिशन बन गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज भी उनके इस मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं।

गुरु-शिष्य की बेमिसाल परंपरा और ‘इच्छा मृत्यु’
महंत अवेद्यनाथ का ब्रह्मलीन होना एक सामान्य घटना नहीं थी, बल्कि इसे एक संत की ‘इच्छा मृत्यु’ की तरह देखा जाता है। उनके शिष्य और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद एक कार्यक्रम में इस बात का जिक्र किया था। उन्होंने बताया था कि उनके गुरुदेव की इच्छा अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर ही गोरखनाथ मंदिर में ब्रह्मलीन होने की थी, और ऐसा ही हुआ।
सितंबर 2014 में महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि सप्ताह समारोह के बाद, योगी आदित्यनाथ अपने गुरुदेव से मिलने मेदांता अस्पताल गए, जो इलाज के लिए गुरुग्राम में भर्ती थे। योगी ने उन्हें पुण्यतिथि कार्यक्रम के सफल समापन की जानकारी दी। चिकित्सकों ने बताया कि उनकी सेहत स्थिर है, जिसके बाद योगी अपने दिल्ली स्थित आवास पर लौट आए।
रात करीब 10 बजे उन्हें अस्पताल से फोन आया कि गुरुदेव की सेहत बिगड़ गई है। चिकित्सकों के समझाने के बावजूद वे महामृत्युंजय का जाप करने लगे, जिसके बाद उनकी तबीयत में कुछ सुधार हुआ। योगी को यह आभास हो गया था कि उनके गुरुदेव की विदाई का समय आ गया है। उन्होंने उनके कान में धीरे से कहा, “कल आपको गोरखपुर ले चलूंगा।” यह सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए।
अगले दिन, एयर एंबुलेंस से गोरखपुर लाने के बाद योगी ने उनके कान में कहा, “आप मंदिर में आ चुके हैं।” यह सुनकर महंत अवेद्यनाथ के चेहरे पर शांति का भाव आ गया। इसके लगभग एक घंटे बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
कैंसर को दी मात और 14 साल तक जीवित रहे
चिकित्सकों के अनुसार, महंत अवेद्यनाथ को 2001 में पैंक्रियाज का कैंसर हुआ था। उस समय डॉक्टरों ने उनके बचने की संभावना केवल 5% बताई थी और एक जाने-माने डॉक्टर ने तो ऑपरेशन करने से ही इनकार कर दिया था। हालांकि, ऑपरेशन के बाद डॉक्टर ने कहा था कि अगर वे बच भी जाते हैं, तो मुश्किल से तीन साल जीवित रहेंगे। लेकिन, महंत अवेद्यनाथ ने अपनी इच्छाशक्ति से इस भविष्यवाणी को गलत साबित किया और उसके बाद भी 14 साल तक जीवित रहे। उनके डॉक्टर अक्सर योगी आदित्यनाथ से फोन पर उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछते थे और उनके बेहतर स्वास्थ्य पर आश्चर्य व्यक्त करते थे।
राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका
महंत अवेद्यनाथ का राम मंदिर आंदोलन में एक केंद्रीय और महत्वपूर्ण स्थान था। 1984 में शुरू हुई राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के शीर्षस्थ नेताओं में उनका नाम था। वे इस समिति के अध्यक्ष और राम जन्मभूमि न्यास समिति के आजीवन सदस्य रहे। विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक स्वर्गीय अशोक सिंघल ने अपने शोक संदेश में उन्हें “श्री रामजन्म भूमि का प्राण” बताया था। उन्होंने कहा था कि उनकी विलक्षण प्रतिभा के कारण ही सभी संप्रदायों और दार्शनिक परंपराओं के संत राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ते चले गए।

जीवन और राजनीतिक यात्रा
महंत अवेद्यनाथ का जन्म मई 1921 को उत्तराखंड के गढ़वाल जिले के कांडी गांव में कृपाल सिंह विष्ट के रूप में हुआ था। शांति की तलाश में वे केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर निकल पड़े। इस दौरान उन्हें हैजा हो गया, और उनके साथी उन्हें मृत समझकर आगे बढ़ गए। ठीक होने के बाद उनका मन और भी विरक्त हो गया।
इसके बाद वे नाथ पंथ के संतों से मिले और अंततः 1940 में गोरखनाथ मंदिर में तब के पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ से मिले और नाथपंथ में दीक्षित होकर अवेद्यनाथ बन गए।
उन्होंने वाराणसी और हरिद्वार में संस्कृत का अध्ययन किया। वे महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष और मासिक पत्रिका ‘योगवाणी’ के संपादक भी रहे। उन्होंने गोरखपुर सदर संसदीय सीट से चार बार और मानीराम विधानसभा सीट से पांच बार लोगों का प्रतिनिधित्व किया। अंतिम लोकसभा चुनाव को छोड़कर उन्होंने सभी चुनाव हिंदू महासभा के बैनर तले लड़े।

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