
लोकसभा में सोमवार को विपक्षी दलों के हंगामे के बीच लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि नारेबाजी, तख्तियां लहराना और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास लोकतंत्र और संसद की गरिमा के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि देश की जनता संसद की कार्यवाही देख रही है और वह यह समझ रही है कि कुछ सदस्य नियोजित तरीके से सदन को बाधित करने का प्रयास कर रहे हैं।
विशेष गहन पुनरीक्षण मुद्दे पर फिर हंगामा
कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के सांसदों ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चर्चा की मांग करते हुए सदन में हंगामा किया। विपक्षी सांसदों ने नारेबाजी की और हाथों में तख्तियां लेकर विरोध जताया, जिससे सदन की कार्यवाही बाधित हुई।
“प्रश्नकाल जनता के लिए होता है”
लोकसभा अध्यक्ष ने प्रश्नकाल के दौरान कहा–“मैंने पहले भी आग्रह किया है और आज फिर कहता हूं कि प्रश्नकाल महत्वपूर्ण समय होता है। यह वह समय है जब मंत्रीगण जनप्रतिनिधियों के सवालों का उत्तर देते हैं। आपको जनता ने उनकी समस्याएं उठाने और समाधान के लिए यहां भेजा है।”
उन्होंने सदस्यों को याद दिलाया कि संसद देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संस्था है, जिसकी परंपराओं और मर्यादाओं का पालन करना सबकी जिम्मेदारी है।
तख्तियां और नारेबाजी पर नाराज़गी
ओम बिरला ने विपक्षी सांसदों से कहा कि हर दिन सदन में तख्तियां लाना, नारेबाजी करना और जानबूझकर अवरोध उत्पन्न करना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। उन्होंने कहा:–“आपको हर मुद्दे पर चर्चा का मौका दिया गया है। पूर्व में भी ऐसा हुआ है। लेकिन यदि आप सदन चलने नहीं देना चाहते, तो यह लोकतांत्रिक परंपरा के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।”
जनता की नजर संसद पर
अध्यक्ष बिरला ने चेतावनी दी कि देश की जनता देख रही है कि विपक्षी सदस्य किस तरह से तय रणनीति के तहत सदन की कार्यवाही में व्यवधान डालते हैं। उन्होंने कहा कि यह रवैया संसद की गरिमा और सार्वजनिक प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी के अनुरूप नहीं है। लगातार हंगामे के कारण लोकसभा अध्यक्ष ने कार्यवाही को सुबह 11 बजकर 10 मिनट पर स्थगित कर दिया, और घोषणा की कि सदन अब दोपहर 2 बजे फिर से शुरू होगा।
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि संसद जैसे उच्च मंच पर जनहित के मुद्दों पर संवाद की जगह विरोध के प्रदर्शन को कितनी प्राथमिकता दी जा रही है। लोकसभा अध्यक्ष का बयान साफ संदेश है कि लोकतंत्र में असहमति जरूरी है, लेकिन उसकी अभिव्यक्ति मर्यादा और नियमों के भीतर होनी चाहिए।

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