
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एक बयान, जिसमें उन्होंने हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं को देर रात बाहर न निकलने की सलाह दी, एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक विवाद का कारण बन गया है। मुख्यमंत्री ने दुर्गापुर में एक मेडिकल छात्रा के साथ हुए कथित सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद यह टिप्पणी की थी।
बनर्जी ने कहा कि “वह रात के 12.30 बजे बाहर कैसे आई? उनसे हॉस्टल के नियमों का पालन करने की उम्मीद की जाती है। उन्हें देर रात बाहर निकलने से बचना चाहिए।” इस बयान को जहां एक वर्ग ‘जमीनी हकीकत’ और ‘हर माँ की सीख’ बताकर सही ठहरा रहा है, वहीं दूसरा वर्ग इसे असंवेदनशील और दुर्भाग्यपूर्ण बता रहा है।
‘मां की सीख’ बनाम ‘अपराधी की मानसिकता’
ममता बनर्जी के बयान के समर्थन में तर्क दिया जा रहा है कि देर रात छात्राओं का बाहर न निकलना ‘सही’ और ‘सुरक्षित’ है। समर्थक कहते हैं कि हर मां अपनी बेटियों को यही सिखाती है कि वे देर रात घर से बाहर न निकलें, और “अच्छे घर की लड़कियां” देर रात बाहर नहीं जातीं।
इसके विपरीत, आलोचकों का कहना है कि यह बयान न केवल असंवेदनशील है, बल्कि समाज में एक गलत संदेश भी देता है कि अपराध रोकने की जिम्मेदारी महिलाओं पर है। उनके अनुसार, जब किसी लड़की के साथ अपराध होता है, तो प्रश्न अपराधियों की मानसिकता और कानून-व्यवस्था पर उठना चाहिए, न कि पीड़िता की स्वतंत्रता पर।
सुरक्षा की सीमा और नागरिक कर्तव्य
ममता बनर्जी के समर्थन में यह तर्क दिया गया कि मुख्यमंत्री ने गलत क्या कहा? सुरक्षा राज्य का मामला है, लेकिन नागरिकों को भी अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पुलिस अधिकारी हर घर के बाहर पहरा नहीं दे सकते, और सुरक्षा व्यवस्था की भी अपनी सीमा है।
समर्थक मानते हैं कि भारत में हर व्यक्ति सद्पुरुष नहीं है, और आपराधिक तत्व अमूमन रात में ही निकलते हैं। ऐसे में, मुख्यमंत्री का यह कहना अनुचित नहीं कि अनावश्यक देर रात बाहर निकलने से बचा जाए। हालांकि, वह यह भी मानती हैं कि अगर किसी लड़की को जरूरी काम है, तो उसे बाहर निकलना चाहिए।

विपक्षी दलों ने बताया ‘नैतिक पतन की पराकाष्ठा’
दूसरी ओर, राजनीतिक विरोधियों ने ममता बनर्जी के बयान को संवेदना और जवाबदेही दोनों स्तरों पर “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण” और “विकृत मानसिकता की निशानी” बताया है। उनका कहना है कि यह टिप्पणी तृणमूल कांग्रेस सरकार के ‘विफल प्रशासन’ और ‘नैतिक रूप से खोखले नेतृत्व’ को दर्शाती है।
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि एक महिला नेत्री होते हुए भी, ममता बनर्जी बलात्कार पीड़िता को न्याय दिलाने के बजाय महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों पर सवाल उठा रही हैं। एक मुख्यमंत्री से अपेक्षा की जाती है कि वह महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की गारंटी दे, न कि उन पर अत्याचारी प्रतिबंध लगाए।
असंतुलित प्रशासन पर सवाल
आलोचकों ने जोर देकर कहा है कि महिलाओं की सुरक्षा का समाधान ‘रात में बाहर न निकलने’ में नहीं, बल्कि अपराधियों को सख्त सजा देने और कानून व्यवस्था को मजबूत करने में है। दुर्गापुर गैंगरेप जैसी अमानवीय घटना के बाद मुख्यमंत्री की यह सलाह देना, कि छात्राएं रात में घर से बाहर न निकलें, निंदनीय है।
स्थिति यह है कि बंगाल में सत्ता में बैठे लोगों द्वारा संरक्षित अपराधी खुलेआम घूमते हैं, जबकि न्याय की मांग करने वाले पीड़ितों की आवाज को दबाया जाता है। यह पूरा विवाद अपराध को रोकने की जिम्मेदारी अपराधियों के बजाय पीड़ितों पर डालने की पीड़ित-कोष (Victim-Blaming) की मानसिकता को उजागर करता है।

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