
मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी और ‘वोट चोरी’ के आरोपों को लेकर संसद में जारी गतिरोध के बीच, कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने मंगलवार को लोकसभा में एक स्थगन प्रस्ताव पेश कर इस मुद्दे पर तत्काल चर्चा की मांग की है। इस प्रस्ताव में भारतीय निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं और इसे लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा बताया गया है। टैगोर ने लोकसभा अध्यक्ष से इस संवेदनशील मुद्दे पर विशेष सत्र बुलाने का आग्रह किया है, ताकि मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा की जा सके।
मणिकम टैगोर ने अपने प्रस्ताव में, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा की गई एक महीने की लंबी जांच का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इस जांच में 2034 के आम चुनावों के दौरान बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर फर्जी और डुप्लिकेट मतदाता सत्यापन के मामले सामने आए हैं। इसके अलावा, बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान भी मतदाता सूची में व्यापक गड़बड़ियां उजागर हुई हैं।
टैगोर ने दावा किया कि जांच में पाया गया कि बड़ी संख्या में जीवित मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटा दिए गए। उन्होंने कहा कि ये सभी अनियमितताएं सत्तारूढ़ दल को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की गई हैं। यह सब जानबूझकर जनसांख्यिकी में हेरफेर करने के लिए किया गया।
प्रस्ताव में चुनाव आयोग की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए, टैगोर ने धारा 16 के तहत आयोग को दी गई कानूनी छूट पर भी आपत्ति जताई। यह प्रावधान मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों को उनके कर्तव्यों के दौरान दीवानी या आपराधिक कार्यवाही से बचाता है। टैगोर ने इसे संवैधानिक सिद्धांतों का कमजोर होना बताया और कहा कि यह प्रावधान आयोग के कदाचार को कानूनी संरक्षण देता है, जिससे जवाबदेही खत्म होती है और मतदाताओं के अधिकारों पर खतरा मंडराता है।
अपनी मांगों में, मणिकम टैगोर ने कर्नाटक और बिहार में मतदाता सूची में हेरफेर की न्यायिक या संसदीय जांच कराने की मांग की है। उन्होंने मतदाता सूची से हटाए गए नामों की पारदर्शी और सत्यापन योग्य सूची जारी करने पर भी जोर दिया। इसके अलावा, उन्होंने 2023 के चुनावी कानून संशोधनों, विशेष रूप से धारा 11, की समीक्षा की मांग की, जो आयोग को कानूनी छूट प्रदान करती है। टैगोर ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र नियुक्ति प्रक्रिया और संरचनात्मक सुधारों की भी आवश्यकता बताई।
कांग्रेस सांसद का यह कदम न केवल संसद में इस मुद्दे पर चर्चा को बढ़ावा देगा, बल्कि यह भी दर्शाता है कि विपक्ष इस लड़ाई को कितनी गंभीरता से ले रहा है। अब यह देखना होगा कि लोकसभा अध्यक्ष इस प्रस्ताव पर क्या निर्णय लेते हैं और क्या सरकार इस गंभीर मुद्दे पर सदन में चर्चा के लिए तैयार होती है।

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