
पूर्व क्रिकेटर मिथुन मन्हास को हाल ही में 28 सितंबर को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया। वे बीसीसीआई के 37वें निर्वाचित अध्यक्ष हैं। लेकिन जो बात उन्हें खास बनाती है, वह है उनका “अन-कैप्ड” होना – यानी वे भारत की राष्ट्रीय टीम के लिए एक भी अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेले, फिर भी उन्होंने क्रिकेट प्रशासन के सर्वोच्च पद तक पहुंच बना ली।
सौरव गांगुली और रोजर बिन्नी से कैसे अलग हैं मन्हास
पिछले दो बीसीसीआई अध्यक्षों सौरव गांगुली और रोजर बिन्नी दोनों ही भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले और सफल क्रिकेटर रहे हैं। इसमें गांगुली भारत के सबसे प्रभावशाली कप्तानों में गिने जाते हैं, जिन्होंने एक दशक से ज्यादा समय तक टीम के लिए खेला और करीब 5 साल तक टीम की कप्तानी की। वहीं रोजर बिन्नी, 1983 विश्व कप विजेता टीम के अहम सदस्य रहे। उनके ऑलराउंड प्रदर्शन ने भारत को चैंपियन बनाने में बड़ी भूमिका निभाई।
इसके उलट, मिथुन मन्हास का बीसीसीआई अध्यक्ष बनना एक ऐतिहासिक घटना है, क्योंकि वे ऐसे पहले अन-कैप्ड क्रिकेटर हैं जिन्हें यह जिम्मेदारी मिली।

घरेलू क्रिकेट के महारथी
भले ही मन्हास को भारतीय टीम में जगह नहीं मिली, लेकिन घरेलू क्रिकेट में उनका दबदबा रहा है। उन्होंने दिल्ली टीम के लिए लंबे समय तक खेला और कप्तानी भी की। उनकी पहचान एक मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज, राइट-आर्म स्पिनर, और पार्ट-टाइम विकेटकीपर के रूप में रही है। करियर के आंकड़े को देखा जाए तो प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 157 मैचों में 9,714 रन के साथ-साथ 27 शतक और 49 अर्धशतक भी बनाए हैं। वहीं लिस्ट ए क्रिकेट के 130 मैचों में 4,126 रन और 5 शतक हैं। साथ ही साथ टी20 क्रिकेट में भी 91 मैच खेलकर 1,170 रन बनाए हैं। वे आईपीएल में भी चेन्नई सुपर किंग्स और पुणे वॉरियर्स का हिस्सा रह चुके हैं।
जम्मू-कश्मीर से लेकर बीसीसीआई तक का सफर
12 अक्टूबर 1979 को जन्मे मिथुन मन्हास मूल रूप से जम्मू-कश्मीर से ताल्लुक रखते हैं। बीसीसीआई अध्यक्ष बनने से पहले वे जम्मू-कश्मीर क्रिकेट बोर्ड के प्रशासक थे। उन्होंने खेल के बाद अपने करियर को कोचिंग की दिशा में मोड़ा और गुजरात टाइटंस की कोचिंग टीम का भी हिस्सा रहे।
मन्हास की नई चुनौती
बीसीसीआई आज दुनिया का सबसे समृद्ध क्रिकेट बोर्ड है। इस संस्था को संचालित करना केवल एक प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि भारतीय क्रिकेट के भविष्य को आकार देना भी है। अब जब मन्हास इस पद पर हैं, तो क्रिकेट जगत की नजर इस पर टिकी होगी कि क्या वह अनुभवी पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की विरासत को आगे बढ़ा पाएंगे और क्या वे पुरुषों के साथ-साथ महिला क्रिकेट को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएंगे..साथ ही क्या वे घरेलू क्रिकेट में पारदर्शिता और सुधार ला सकेंगे?

अन-कैप्ड होकर भी क्रिकेट के सर्वोच्च पद पर
मिथुन मन्हास का अध्यक्ष बनना यह साबित करता है कि सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलना ही नेतृत्व का पैमाना नहीं होता।
उनकी सफलता घरेलू खिलाड़ियों और कोचों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है। कभी भारतीय टीम की जर्सी नहीं पहनी, लेकिन आज भारतीय क्रिकेट की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है।
बीसीसीआई जैसे बड़े संगठन की कमान संभालना आसान काम नहीं है। मिथुन मन्हास, जिनकी पहचान अब तक एक मध्यम क्रम बल्लेबाज और घरेलू क्रिकेट के सिपाही के रूप में थी, अब वह भारतीय क्रिकेट के नीति-निर्माता बन चुके हैं। उनकी नई भूमिका पर सभी की निगाहें हैं । देखना यह है कि अनुभव, समझ और नेतृत्व क्षमता के बल पर वह भारतीय क्रिकेट को नई दिशा दे पाते हैं या नहीं।

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