
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने संघ–राज्य संबंधों में संतुलन बहाल करने के लिए एक महत्वपूर्ण और राजनीतिक रूप से असरदार पहल की है। उन्होंने एक दृष्टिपत्र (पत्र) जारी करते हुए देश के अन्य मुख्यमंत्रियों और राजनीतिक दलों के नेताओं से मिलकर भारत के असली संघीय ढांचे को मजबूत करने का आग्रह किया है, विलगता की राजनीति से ऊपर उठकर एक संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने का आह्वान।
मुख्यमंत्री ने पत्र में स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान, 1935 के इंडियन गवर्नमेंट एक्ट से प्रेरित, एक असंप्रभु संघीय संरचना स्थापित करता है—जहां केंद्र और राज्यों का संतुलन समावेशी था। उन्होंने कहा कि समय के साथ यह संतुलन कमजोर हुआ है, और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि “मजबूत केंद्र और मजबूत राज्य विरोधी नहीं, बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं।”
इस तर्क को उन्होंने अपने पूर्ववर्ती नेताओं—डॉ. सी.एन. अन्नादुरई और एम. करुणानिधि के विचारों से जोड़ते हुए याद किया। अन्नादुरई के दृष्टिकोण में रक्षा के लिए केंद्र को मजबूत होना चाहिए, पर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी क्षेत्रीय जिम्मेदारियां राज्यों की ही रहें। वहीं, करुणानिधि की राजामन्नार समिति (1969–71) ने संघ–राज्य संबंधों पर पहला व्यापक अध्ययन प्रस्तुत किया था, जिसे 1974 में विधानसभा ने शुरू किया था—लेकिन इसके सिफारिशों को आज तक लागू नहीं किया गया।
उन्होंने वर्तमान में बढ़ती वित्तीय निर्भरता, केंद्रीय नीतियों और शक्तियों के केंद्रीकरण की ओर इशारा करते हुए बताया कि राज्यों के अधिकार धीरे-धीरे कमजोर होते जा रहे हैं। इस चुनौतियों से निपटने के लिए मुख्यमंत्री ने एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है, जिसकी अध्यक्षता पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ करेंगे। सदस्य मंडल में पूर्व आईएएस अशोक वर्धन शेट्टी और पूर्व राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष प्रो. एम. नागनाथन शामिल हैं।
इस समिति का मण्डल संविधान, कानून, नीतियों और आदेशों की गहन समीक्षा करेगा और राज्यों से छीनी गयी शक्तियों को वापस लाने के लिए ठोस सुझाव तैयार करेगा। प्रारंभिक रिपोर्ट जनवरी 2026 तक, और अंतिम रिपोर्ट दो वर्षों के भीतर प्रस्तुत की जाएगी।
मुख्यमंत्री ने इस पहल को एक राजनैतिक कदम से ऊपर बताते हुए कहा कि यह संघर्ष राजनीति नहीं, बल्कि मानवतावाद और संविधान की मूल आत्मा को पुनः स्थापित करने की मुहिम है। उन्होंने सभी राज्यों से अनुरोध किया कि वे तमिलनाडु के वेब पोर्टल hlcusr.tn.gov.in पर तैयार प्रश्नावली पर व्यावहारिक और विचारपूर्ण प्रतिक्रिया दें। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि प्रत्येक राज्य अपनी संबंधित विभागों को इस पर विचार करने और उत्तर देने हेतु निर्देशित करे।
राजनीतिक विश्लेषण के दृष्टिकोण से, यह कदम 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले डीएमके की रणनीतिक तैयारी का हिस्सा भी प्रतीत होता है। यह केवल राज्य अधिकारों का मुद्दा नहीं, बल्कि DMK का एक संविधानवाद और राज्य स्वायत्तता का राजनीतिक अभियान भी है। AIADMK–BJP गठबंधन के परिदृश्य में, स्टालिन संघीय मूल्यों का रक्षक बनकर उभरना चाह रहे हैं।
परिणाम और राजनीतिक महत्व
इस पहल की गूंज सिर्फ तमिलनाडु तक सीमित नहीं होगी। यह राष्ट्रीय राजनीति में संघीयता का जीवंत बहस का हिस्सा बनेगी। राज्यों का सहयोग मिलने पर यह आंदोलन एक संविधानिक आंदोलन में विकसित हो सकता है, जिसका असर केंद्र की नीति-निर्माण प्रक्रिया और संघीय ढांचे पर गहरा होगा।
यदि राज्य सक्रिय भागीदारी दिखाते हैं, तो संघीय संतुलन की पुनर्स्थापना, वित्तीय स्वायत्तता, शिक्षा व स्वास्थ्य पर राज्य नियंत्रण जैसे मुद्दे न केवल संस्थागत रूप से बल्कि जनाधार के आधार पर भी मजबूत होंगे।
स्टालिन की यह पहल एक राजनैतिक उद्गम तो है, लेकिन उसका केन्द्र बिंदु संवैधानिक मूल्यों और भारत के संघीय कायाकल्प की महिमा है। यह एक ऐसी लहर है, जो सिर्फ तमिलनाडु नहीं, सभी राज्यों में लोकतांत्रिक शक्ति के लिए जागरूकता पैदा कर सकती है।

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