
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) इस वर्ष अपनी स्थापना के 100 साल पूरे होने पर “शताब्दी वर्ष” का भव्य आयोजन कर रहा है। 1925 में नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संगठन अब देश के हर गांव, बस्ती और घर तक अपनी पहुंच बढ़ाने की योजना बना रहा है।
दिल्ली में मुस्लिम धर्मगुरुओं संग महत्वपूर्ण बैठक
गुरुवार को दिल्ली के हरियाणा भवन में एक अहम बैठक आयोजित की जा रही है जिसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत मुस्लिम धर्मगुरुओं से संवाद करेंगे। बैठक में आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी—दत्तात्रेय होसबाले, कृष्ण गोपाल, रामलाल और इंद्रेश कुमार—की मौजूदगी रहेगी। साथ ही ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के प्रमुख उमर इलियासी सहित कई मुस्लिम धर्मगुरु इसमें हिस्सा लेंगे।
सांप्रदायिक सौहार्द और संवाद को बढ़ावा
इस बैठक का मूल उद्देश्य विभिन्न धर्मों के बीच संवाद को प्रोत्साहित करना और सामाजिक सौहार्द को मजबूत करना है। आरएसएस सूत्रों के अनुसार, यह बैठक भविष्य में अधिक ऐसे संवादों की नींव रख सकती है, जो धार्मिक सद्भाव और एकता को बढ़ाएंगे।
आरएसएस की विचारधारा और सेवा भाव
आरएसएस की स्थापना हिंदू समाज को संगठित और सशक्त बनाने के उद्देश्य से हुई थी। संगठन ने बीते सौ वर्षों में समाज सेवा, शिक्षा, आपदा राहत और राष्ट्र निर्माण से जुड़े कई कार्य किए हैं। संघ की विचारधारा हिंदुत्व पर आधारित है, जो भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों के संरक्षण पर केंद्रित है।
शताब्दी वर्ष में विशेष कार्यक्रमों की श्रृंखला
शताब्दी वर्ष के दौरान आरएसएस द्वारा सामाजिक सेवा, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और राष्ट्रीय एकता से जुड़े कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। संगठन देशभर में जागरूकता अभियान, जनसंवाद एवं सांस्कृतिक आयोजन के माध्यम से अपनी विचारधारा को जन-जन तक पहुंचा रहा है।
एक नए युग का संकेत
विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली में होने वाली यह बैठक दो अलग धार्मिक समुदायों के बीच संवाद का एक नया अध्याय साबित हो सकती है। खास तौर पर ऐसे समय में जब समाज में ध्रुवीकरण की चर्चा होती है, यह पहल समरसता और सहयोग का संदेश देती है।
आरएसएस का शताब्दी वर्ष केवल संगठनात्मक उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक सार्थक पहल है। मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ बैठक इस बात का संकेत है कि विचारों का आदान-प्रदान और संवाद ही विविध भारत की असली ताकत है।

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