
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मंगलवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित ‘संघ की 100 वर्षों की यात्रा: नए क्षितिज’ नामक व्याख्यान श्रृंखला का उद्घाटन किया। अपने संबोधन में उन्होंने ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा कि इसका सत्ता या शासन से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह सभी के लिए न्याय और बिना किसी भेदभाव के समानता सुनिश्चित करने से जुड़ा है।
‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा पर दिया जोर
डॉ. भागवत ने कहा कि जब संघ ‘हिंदू राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग करता है, तो इसे अक्सर गलत समझा जाता है। उन्होंने समझाया कि पश्चिमी विचारधारा में ‘राष्ट्र’ का अर्थ ‘नेशन’ होता है, जो एक ‘स्टेट’ (राज्य) से जुड़ा होता है। लेकिन भारत का राष्ट्रभाव हजारों वर्षों से अस्तित्व में है और यह इस पर निर्भर नहीं करता कि सत्ता में कौन है। उन्होंने कहा, “हिंदू राष्ट्र का मतलब है, सभी के लिए न्याय, बिना किसी भेदभाव के।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत में पिछले 40,000 वर्षों से डीएनए एक जैसा है, और ‘हिंदवी’, ‘भारतीय’ और ‘सनातन’ केवल शब्द नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता की पहचान हैं।
संघ की विचारधारा और कार्यशैली
डॉ. भागवत ने संघ के संस्थापक डॉ. के.बी. हेडगेवार को याद करते हुए कहा कि उन्होंने 1925 से पहले ही संघ की कल्पना कर ली थी। हेडगेवार का उद्देश्य पूरे हिंदू समाज को संगठित करना था। भागवत ने कहा कि जो स्वयं को हिंदू मानता है, उसे देश का एक जिम्मेदार नागरिक भी होना चाहिए, और यही हमारी सनातन पहचान से जुड़ी जिम्मेदारी है।
उन्होंने संघ की कार्यशैली पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संघ ने कभी किसी से धन की याचना नहीं की और न ही किसी की संपत्ति में हाथ डाला। जब भी विरोध हुआ, संघ ने शत्रुता नहीं दिखाई और हमेशा स्वावलंबी रहते हुए सेवा भावना से काम किया।
भारत का वैश्विक मिशन
सरसंघचालक ने भारत के वैश्विक योगदान पर भी बात की। उन्होंने कहा कि संघ का मिशन भारत को दुनिया में एक अग्रणी स्थान दिलाना है, लेकिन यह किसी स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि विश्व में शांति और समरसता फैलाने के लिए है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को उद्धृत करते हुए कहा कि प्रत्येक राष्ट्र का एक उद्देश्य होता है, और भारत का उद्देश्य विश्वगुरु बनना है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत में एकता का अर्थ समानता नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति विविधता में एकता को सिखाती है। उन्होंने कहा कि समाज के हर वर्ग को जोड़ना और संगठित करना संघ का काम है।
इस व्याख्यान का आयोजन आरएसएस के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में किया गया था। यह डॉ. भागवत का एक महत्वपूर्ण संबोधन था, जिसमें उन्होंने संघ की विचारधारा, उसके उद्देश्यों और राष्ट्र निर्माण में उसकी भूमिका को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें रखीं।

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