
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने विजयादशमी के पावन अवसर पर एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को फिर से अपने आत्मस्वरूप में खड़ा करने का समय आ गया है। उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि लंबे समय तक चले विदेशी आक्रमणों के कारण हमारी देशी प्रणालियां नष्ट हो गई थीं। अब समय आ गया है कि इन प्रणालियों को समय के अनुसार, समाज और शिक्षा प्रणाली के भीतर दोबारा स्थापित किया जाए।
डॉ. भागवत ने स्पष्ट किया कि इस कार्य को करने के लिए हमें समर्पित व्यक्तियों को तैयार करना होगा। यह केवल मानसिक सहमति से नहीं होगा, बल्कि इसके लिए मन, वाणी और कर्म में बदलाव लाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन किसी भी व्यवस्था के बिना संभव नहीं है, और संघ की शाखा ही वह मजबूत व्यवस्था है जो इस कार्य को कर रही है। उन्होंने शाखा को केवल शारीरिक अभ्यास की जगह नहीं, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण और समाज में सकारात्मक आदतों के निर्माण की प्रयोगशाला बताया।
संघ की शाखा: व्यक्तित्व निर्माण की साधना
संघ के शताब्दी वर्ष के निकट आने पर डॉ. भागवत ने कहा कि सौ वर्षों से संघ के स्वयंसेवक इस व्यवस्था को हर परिस्थिति में चलाते आ रहे हैं और आगे भी चलाते रहेंगे। उन्होंने स्वयंसेवकों से अपील की कि वे नित्य शाखा के कार्यक्रमों को पूरी श्रद्धा से करें और अपने आचरण में परिवर्तन लाने की साधना करें।
भागवत ने कहा कि समाज की उन्नति के लिए सिर्फ व्यवस्थाएं ही जिम्मेदार नहीं होतीं, बल्कि परिवर्तन की असली शक्ति समाज की इच्छाशक्ति में निहित होती है। इसलिए संघ व्यक्तिगत सद्गुणों, सामूहिकता और सेवा भावना को समाज में फैलाने का कार्य कर रहा है, ताकि समाज में परिवर्तन की इच्छाशक्ति जागृत हो सके।

हिंदू समाज ही देश की एकता और सुरक्षा की गारंटी
सरसंघचालक ने हिंदू समाज की भूमिका पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि “संपूर्ण हिंदू समाज का संगठित, शील संपन्न बल ही इस देश की एकता, अखंडता, विकास और सुरक्षा की गारंटी है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदू समाज ही इस देश के लिए उत्तरदायी समाज है और यह सर्व-समावेशी समाज है।
उन्होंने भारत की ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की परंपरा को याद दिलाते हुए कहा कि यह उदार और समावेशी विचारधारा ही भारत की ताकत है। उन्होंने कहा कि इस विचार को दुनिया तक पहुंचाना हिंदू समाज का कर्तव्य है।
भागवत ने बताया कि संघ संगठित कार्यशक्ति के द्वारा भारत को वैभव संपन्न और धर्म के मार्ग पर चलने वाला देश बनाने के संकल्प के साथ कार्य कर रहा है। उन्होंने विजयादशमी पर सीमोल्लंघन की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि आज की देश-काल-परिस्थिति को देखते हुए हमें अपने पूर्वजों के बताए कर्तव्य को निभाते हुए साथ मिलकर एक सशक्त भारत के निर्माण के लिए आगे बढ़ना होगा। शताब्दी वर्ष का उद्देश्य व्यक्ति निर्माण को देशव्यापी बनाना और पंच परिवर्तन कार्यक्रम को समाज में लागू करना है।

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