
नई दिल्ली स्थित अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में मंगलवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) और अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के संयुक्त तत्वावधान में ‘विश्व की समस्याएं और भारतीयता’ विषय पर 10वां अणुव्रत न्यास निधि व्याख्यान आयोजित किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मुख्य वक्ता के रूप में संबोधन दिया।
समस्याओं पर नहीं, समाधान पर हो चर्चा
मोहन भागवत ने अपने वक्तव्य की शुरुआत इस विचार से की कि समस्याओं की चर्चा अधिक करने से समाधान की दिशा में ऊर्जा क्षीण हो जाती है। उन्होंने कहा, “माथा पकने से बेहतर है कि उपायों पर बात हो।” उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि विश्व विभिन्न संकटों से घिरा हुआ है और समाधान खोजने के लिए एक व्यापक सांस्कृतिक दृष्टिकोण जरूरी है।
प्राचीन समस्याएं आज भी कायम
भागवत ने कहा कि विश्व की समस्याएं नई नहीं हैं, बल्कि यह सूची 2000 वर्षों से भी पुरानी है। उन्होंने दुख को मानव जीवन की सबसे पुरानी और प्रमुख समस्या बताया। आधुनिक युग में सुविधाएं भले ही बढ़ी हों, लेकिन दुख कम नहीं हुआ। विज्ञान और तकनीक ने जीवन को सरल बनाया, फिर भी मानसिक अशांति और सामाजिक असंतुलन बढ़ा है।
विकास के बावजूद बढ़ा दुःख और भय
उन्होंने कहा कि मनुष्य के पास आज अद्भुत तकनीकी क्षमता है। जहां विज्ञान ने मानवता को आगे बढ़ाया, वहीं अज्ञानता भी बढ़ी है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पहले आमजन आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा के सरल उपायों से जीवन जीते थे, अब वही साधन विज्ञापन और बाजार का हिस्सा बन चुके हैं। उन्होंने योग गुरु बाबा रामदेव का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे ही लौकी के फायदे बताए गए, उसकी कीमत बढ़ गई, परंतु असली मुद्दा यह है कि परिश्रम और श्रम की संस्कृति लुप्त हो रही है।

राजनीति, धर्म और सत्ता – तीनों ने किया शोषण
मोहन भागवत ने ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि किस तरह पहले राजा जनता का भला करने आया, फिर जुल्मी बन गया। धर्मगुरुओं ने सत्ता और नैतिकता का रास्ता दिखाया, लेकिन अंततः वे भी सत्ता से जुड़कर जनता को लूटने लगे। विज्ञान आया तो शोषण का तरीका बदल गया। पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों ने अपने-अपने ढंग से सत्ता संभाली, लेकिन अंत में आम आदमी के हिस्से में फिर भी दुख ही आया।
‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की सोच हावी
उन्होंने आधुनिक प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया की आलोचना करते हुए कहा कि आज का समाज ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की मानसिकता से ग्रस्त है। अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष अनिवार्य हो गया है। उन्होंने इसे प्रकृति का नियम बताते हुए कहा कि बड़ी मछली छोटी को खा जाती है। इसी सोच ने दुनिया को उपभोक्तावादी बना दिया है।

प्रेम और भारतीयता की ओर लौटने का सुझाव
अपने भाषण के अंत में मोहन भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि “अब उपाय खोजने का समय है।” उन्होंने कहा कि भौतिकता से ऊपर उठकर प्रेम, परस्पर सम्मान और भारतीय जीवन मूल्यों को अपनाना ही विश्व समस्याओं का समाधान है। उन्होंने अफसोस जताया कि आज प्राचीन परंपराओं और आध्यात्मिक दृष्टिकोण को कोई नहीं सुनता, जबकि इन्हीं में शांति और संतुलन का सूत्र है।
मोहन भागवत का यह व्याख्यान आधुनिक दुनिया की चुनौतियों और भारतीय संस्कृति की प्रासंगिकता के गहन विश्लेषण के रूप में सामने आया। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि जब तक समाज भौतिक सुख को ही जीवन का अंतिम लक्ष्य मानता रहेगा, तब तक समस्याओं का समाधान नहीं होगा। भारतीयता की आत्मा को पुनः जाग्रत कर ही हम सच्चे अर्थों में विश्व कल्याण की दिशा में बढ़ सकते हैं।

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