
महाराष्ट्र में नक्सलवाद और शहरी माओवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के उद्देश्य से लाया गया ‘महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा (एमएसपीएस) विधेयक, 2024’ शुक्रवार को राज्य परिषद में ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। हालांकि, इस दौरान विपक्ष ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध बताते हुए सदन से वॉक आउट कर दिया।
गृह राज्य मंत्री ने दी विधेयक की जानकारी
विधेयक को सदन में पेश करते हुए गृह राज्य मंत्री योगेश कदम ने कहा कि इस कानून का मकसद राज्य में सक्रिय उन संगठनों को प्रतिबंधित करना है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देकर शहरी नक्सलवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। मंत्री कदम ने बताया कि वर्तमान में महाराष्ट्र में ऐसे करीब 64 संगठन सक्रिय हैं जिनकी गतिविधियां सामाजिक समरसता और कानून व्यवस्था के लिए खतरा बन सकती हैं।
यूएपीए से अलग क्यों है यह कानून
मंत्री कदम ने यूएपीए कानून की सीमाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यूएपीए केवल उन मामलों में प्रभावी होता है जहां हिंसा की घटनाएं घटित हुई हों। लेकिन बदलते हालात में नक्सली विचारधारा अब हिंसा से इतर शहरों में वैचारिक और बौद्धिक स्तर पर पैर पसार रही है। ऐसे में केवल यूएपीए से इसे नियंत्रित कर पाना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि इस नए कानून के तहत हिंसक गतिविधियों के अलावा वैचारिक प्रचार को भी कानूनी दायरे में लाया जाएगा ताकि शहरी नक्सलवाद पर समय रहते रोक लगाई जा सके।
न्यायिक सलाहकार बोर्ड की होगी भूमिका
विधेयक के अनुसार, प्रतिबंध की प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायिक होगी। इसके लिए एक सलाहकार बोर्ड का गठन किया जाएगा जिसमें उच्च न्यायालय के मौजूदा या सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश तथा सरकारी अभियोजक शामिल होंगे। किसी भी संगठन पर प्रतिबंध लगाने से पहले सभी साक्ष्य इस बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किए जाएंगे और बोर्ड की सिफारिश के आधार पर ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। मंत्री कदम ने कहा कि यह कानून केवल उन संगठनों और व्यक्तियों पर लागू होगा जो माओवादी विचारधारा को समाज में फैलाकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। आम प्रदर्शनकारियों या लोकतांत्रिक आंदोलन में भाग लेने वालों को इससे डरने की जरूरत नहीं है।
विपक्ष ने जताई सख्त आपत्ति
विधेयक पारित होने के दौरान विपक्ष ने इसे राजनीति से प्रेरित करार देते हुए सदन से वॉक आउट कर दिया। शिवसेना (यूबीटी) के विधायक अनिल परब ने कहा कि आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का हर कोई समर्थन करता है, लेकिन इस विधेयक के प्रावधानों में राजनीति की बू आती है। परब ने आशंका जताई कि सरकार इस कानून का इस्तेमाल विरोधियों की आवाज दबाने और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करने के लिए कर सकती है। उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार राष्ट्रहित के मुद्दे पर एकजुट रह सकती है, लेकिन ऐसा कानून अगर राजनीति के लिए इस्तेमाल हुआ तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा।

सत्तापक्ष ने बताया समय की जरूरत
वहीं सत्तारूढ़ गठबंधन ने विपक्ष के आरोपों को निराधार बताया और विधेयक को राज्य की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम करार दिया। सत्ता पक्ष के सदस्यों ने कहा कि इस कानून से नक्सलवाद और आतंकवाद जैसी चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकेगा और समाज में शांति एवं विकास के माहौल को मजबूती मिलेगी।
पहले विधानसभा में भी मिला समर्थन
इससे पहले गुरुवार को यह विधेयक राज्य विधानसभा में भी ध्वनिमत से पारित कर दिया गया था। वहां भी माकपा के एकमात्र सदस्य ने इसका विरोध किया था। अब राज्यपाल की स्वीकृति के बाद यह कानून अमल में आ जाएगा।
एमएसपीएस विधेयक के जरिए महाराष्ट्र सरकार ने नक्सली विचारधारा के शहरी प्रसार को रोकने के लिए एक सख्त कानूनी ढांचा तैयार किया है। हालांकि, इसके राजनीतिक दुरुपयोग की आशंकाओं के चलते विपक्ष इसे लेकर सजग है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह कानून जमीनी स्तर पर कितना कारगर साबित होता है और इसके क्रियान्वयन में कितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता बरती जाती है।

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