
देश की सुरक्षा एजेंसियों के लिए हालिया घटनाक्रम एक गंभीर चेतावनी है। हिन्दू धर्मगुरुओं की हत्या की साजिश में संलिप्त मो. रजा केवल एक आतंकी साजिशकर्ता नहीं, बल्कि एक संगठित नेटवर्क का सरगना था, जो पूरे देश में खून-खराबा फैलाने के उद्देश्य से ‘मुजाहिदीन आर्मी’ खड़ा कर रहा था। यह मामला केवल धार्मिक कट्टरता का नहीं, बल्कि तकनीकी और शैक्षणिक रूप से दक्ष युवाओं के ब्रेनवॉश का भी है।
मो. रजा ने बीटेक, एमबीए और अन्य उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं को भड़काऊ वीडियो के माध्यम से मानसिक रूप से तैयार किया। उसने सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर उन्हें अपने मिशन में शामिल किया, ताकि उनकी पृष्ठभूमि के कारण उन पर संदेह न हो। यह रणनीति दर्शाती है कि आतंकी संगठन अब पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़कर आधुनिक तकनीक और मनोवैज्ञानिक हथियारों का प्रयोग कर रहे हैं।
एटीएस और खुफिया एजेंसियों की कार्रवाई में मो. रजा समेत उसके चार सहयोगियों की गिरफ्तारी हुई। उनके मोबाइल, दस्तावेजों और डायरी से जो जानकारियां मिलीं, वे देश विरोधी गतिविधियों की गहराई को उजागर करती हैं। यह नेटवर्क कई राज्यों में फैला हुआ था और 300 से अधिक युवाओं को जोड़ चुका था।

इस घटना से स्पष्ट है कि आतंकी साजिशें अब केवल सीमावर्ती क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि देश के भीतर शिक्षित वर्ग को लक्ष्य बनाकर गुप्त रूप से फैल रही हैं। यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए सतर्कता बढ़ाने का समय है, साथ ही समाज के लिए आत्मनिरीक्षण का भी, कि कैसे कट्टरता और नफरत की भाषा युवाओं को हिंसा की ओर मोड़ रही है।
सरकार और नागरिक समाज को मिलकर ऐसे नेटवर्क को जड़ से खत्म करने के लिए तकनीकी निगरानी, वैचारिक जागरूकता और सामाजिक संवाद को प्राथमिकता देनी होगी।

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