
देश में लंबे समय से चल रही बहस “एक राष्ट्र, एक चुनाव” अब गंभीर विमर्श के दौर में प्रवेश कर चुकी है। इस ऐतिहासिक चुनाव सुधार पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के अध्यक्ष और वरिष्ठ भाजपा सांसद पी.पी. चौधरी ने शनिवार को महत्वपूर्ण बयान देते हुए कहा कि देश इस विचार पर राष्ट्रीय हित में गंभीरता से विचार करने के लिए तैयार है।
उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर समिति द्वारा की गई चर्चाओं और राज्यस्तरीय दौरों से प्राप्त प्रतिक्रिया अत्यंत उत्साहजनक रही है। “हमने कानूनी विशेषज्ञों, राजनीतिक दलों, नागरिक संगठनों, राज्य सरकारों और आम नागरिकों से जो प्रतिक्रियाएं प्राप्त की हैं, वे यह दर्शाती हैं कि एक राष्ट्र, एक चुनाव केवल व्यावहारिक ही नहीं, बल्कि संवैधानिक रूप से भी स्वीकार्य है — बशर्ते इसे उचित सुरक्षा उपायों और ढांचे के साथ लागू किया जाए।”
समाज के हर स्तर से मिल रहा सहयोग
जेपीसी अध्यक्ष ने बताया कि अब तक महाराष्ट्र, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ जैसे राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में स्टडी टूर किए जा चुके हैं, जिनमें प्रशासनिक अधिकारियों, विधायकों, वाणिज्य मंडलों और कानूनी विशेषज्ञों से विस्तृत बातचीत की गई है। “इस तरह का समावेशी और गहराई से किया गया संवाद संसदीय इतिहास में विरल है,” उन्होंने कहा।
राज्यों के मुख्यमंत्रियों, उपमुख्यमंत्रियों और विधानसभा अध्यक्षों ने भी समिति के समक्ष अपने विचार व्यक्त किए हैं, जो इस सुधार की राजनीतिक स्वीकार्यता को भी दर्शाता है।
संवैधानिक दृष्टिकोण से भी संतुलन में प्रस्ताव
संविधान और संघवाद को लेकर कुछ आशंकाएं अवश्य जताई गईं, लेकिन श्री चौधरी ने स्पष्ट किया कि देश के कई पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और वरिष्ठ विधि विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति जताई है कि यह प्रस्ताव संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। “संविधान में पहले से मौजूद प्रावधान समन्वित चुनावों की संभावनाओं को दर्शाते हैं,” उन्होंने बताया।
व्यवहारिक लाभ स्पष्ट: खर्च में कटौती, नीति स्थिरता में वृद्धि
समिति के अनुसार, “एक राष्ट्र, एक चुनाव” प्रणाली लागू होने से चुनावी खर्च में कटौती, प्रशासनिक व्यवस्था में स्थिरता और लगातार चुनावी मोड से मुक्ति जैसी अनेक व्यवहारिक और आर्थिक लाभ मिल सकते हैं। इससे सरकारें अपनी योजनाओं पर निरंतर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी, और नीति निर्माण में बाधा उत्पन्न नहीं होगी।
भविष्य की दिशा: दो वर्षों तक जारी रहेगा संवाद
जेपीसी अध्यक्ष ने यह भी बताया कि यह प्रक्रिया अत्यंत गंभीर और गहन है, और इसमें सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है। समिति खंड-वार प्रस्तावित विधेयकों की जांच कर रही है और वह सभी संवैधानिक एवं विधिक पहलुओं की समीक्षा करते हुए जरूरी सुधार सुझाएगी। यह अभ्यास अगले दो से ढाई वर्षों तक चल सकता है।
एक समावेशी और लोकतांत्रिक सुधार की ओर बढ़ता भारत
जेपीसी अध्यक्ष पी.पी. चौधरी के वक्तव्यों से यह स्पष्ट है कि “एक राष्ट्र, एक चुनाव” अब केवल एक नारा नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण और संस्थागत सुधार की दिशा में एक ठोस प्रयास बन चुका है। इस प्रक्रिया में देश के प्रत्येक हिस्से और विचारधारा को सम्मिलित किया जा रहा है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि यह परिवर्तन संवैधानिक मर्यादाओं के भीतर रहकर, लोकतंत्र की आत्मा को सुदृढ़ करते हुए लागू हो। यदि यह प्रयास सफल होता है, तो यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

गांव से लेकर देश की राजनीतिक खबरों को हम अलग तरीके से पेश करते हैं। इसमें छोटी बड़ी जानकारी के साथ साथ नेतागिरि के कई स्तर कवर करने की कोशिश की जा रही है। प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक की राजनीतिक खबरें पेश करने की एक अलग तरह की कोशिश है।



