
राज्यसभा में मंगलवार को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर जारी विशेष चर्चा के दौरान राजनीतिक गर्मी अपने चरम पर पहुंच गई, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे पर तीखा हमला बोला। इस दौरान सदन में तीखा हंगामा देखने को मिला और विपक्षी दलों ने नड्डा के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई।
नड्डा का हमला: “आपके लिए देश का विषय गौण हो गया”
जेपी नड्डा ने अपने संबोधन में मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर की गई टिप्पणी का जवाब देते हुए कहा, “वह बहुत वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन जिस प्रकार से उन्होंने प्रधानमंत्री पर टिप्पणी की, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रधानमंत्री मोदी पिछले 11 साल से देश का नेतृत्व कर रहे हैं और वे दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। भाजपा को ही नहीं, देश को भी उन पर गर्व है।”
नड्डा ने कहा कि खड़गे अपनी पार्टी की विचारधारा में इतने उलझ गए हैं कि देश के मुद्दे उनके लिए गौण हो गए हैं। इस पर विपक्ष ने एकसाथ विरोध दर्ज कराते हुए हंगामा शुरू कर दिया।
विवाद बढ़ने पर नड्डा ने लिया बयान वापस
विपक्ष के शोरगुल के बीच जेपी नड्डा ने स्पष्ट किया कि उनका इरादा किसी का अपमान करने का नहीं था। उन्होंने कहा, “मैं अपने शब्द वापस लेता हूं। मानसिक संतुलन नहीं, इसे भावावेश कहिए। वे जिस भावावेश में बोल रहे हैं, वह उनके व्यक्तित्व और उनकी पार्टी की गरिमा के अनुरूप नहीं है।”
खड़गे का पलटवार: “यह शर्म की बात है”
जेपी नड्डा के बयान पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी पलटवार किया। उन्होंने कहा, “इस सदन में कुछ नेता हैं, जिनका मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत सम्मान करता हूं, जिनमें जेपी नड्डा भी शामिल हैं। लेकिन आज जो उन्होंने कहा, वह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि शर्मनाक भी है। उन्हें इसके लिए माफी मांगनी चाहिए।”
खड़गे ने यह भी कहा कि “अगर वरिष्ठ नेता इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करेंगे, तो यह संसदीय गरिमा के खिलाफ है। मैं इस मामले को ऐसे ही नहीं छोड़ूंगा।”
सदन की गरिमा पर उठे सवाल
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान बार-बार हंगामे के कारण राज्यसभा की कार्यवाही कुछ समय के लिए बाधित रही। विपक्ष ने जहां सत्ता पक्ष पर बहस की गरिमा को भंग करने का आरोप लगाया, वहीं भाजपा नेताओं ने इसे भावनाओं की अभिव्यक्ति बताया।
राजनीतिक माहौल गरम, बहस की दिशा भटकी
‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा विषय पर हो रही चर्चा के दौरान हुई इस जुबानी जंग ने एक बार फिर दिखा दिया कि राजनीतिक मतभेद किस तरह संसदीय विमर्श को प्रभावित कर सकते हैं। इस विवाद ने बहस की दिशा को सुरक्षा जैसे मुद्दों से हटाकर व्यक्तिगत कटाक्ष की ओर मोड़ दिया।

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