
मुख्यमंत्री और मंत्रियों की बर्खास्तगी से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक पर विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन में फूट साफ नजर आ रही है। इस विधेयक की जांच के लिए गठित होने वाली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में शामिल होने से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और समाजवादी पार्टी (सपा) के बाद अब आम आदमी पार्टी (आप) ने भी इनकार कर दिया है। इन दलों के इस रुख ने कांग्रेस पर विपक्षी एकजुटता को बनाए रखने का दबाव बढ़ा दिया है।
‘यह गैर-संवैधानिक विधेयक’
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर इस फैसले की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार एक ‘गैर-संवैधानिक विधेयक’ लेकर आई है, जिसका एकमात्र मकसद लोकतंत्र को खत्म करना है। उन्होंने साफ किया कि उनकी पार्टी इस विधेयक पर विचार करने वाली जेपीसी में शामिल नहीं होगी।
यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि संसदीय समितियों की कार्यवाही अदालतों में भी मायने रखती है और विवादित विधेयकों पर जनमत को प्रभावित करती है। टीएमसी, सपा और आप के इस रुख से कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है, क्योंकि उसे अब अकेले इस मुद्दे पर सरकार का सामना करना पड़ सकता है।
कांग्रेस पर बढ़ा दबाव
टीएमसी पहले ही इस विधेयक का विरोध करते हुए जेपीसी का हिस्सा नहीं बनने का ऐलान कर चुकी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी टीएमसी के रुख का समर्थन कर चुके हैं। इन दो बड़े दलों के बाद आप का भी किनारा करना, ‘इंडिया’ गठबंधन में समन्वय की कमी को दर्शाता है। कांग्रेस ने अभी तक इस मुद्दे पर अपना अंतिम फैसला नहीं सुनाया है, जिससे यह साफ नहीं है कि वह अकेले जेपीसी में शामिल होगी या इन दलों के साथ बहिष्कार का रास्ता अपनाएगी।
यह स्थिति विपक्षी एकजुटता के लिए एक बड़ी चुनौती है। तीनों पार्टियों का मानना है कि यह विधेयक लोकतंत्र विरोधी है, लेकिन जेपीसी का बहिष्कार करने का उनका सामूहिक फैसला कांग्रेस को एक अजीब स्थिति में डाल सकता है। इससे यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या ‘इंडिया’ गठबंधन भविष्य में महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक साथ मिलकर फैसला ले पाएगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस मुश्किल से कैसे निपटती है और क्या यह मुद्दा विपक्षी गठबंधन में एक बड़ी दरार का कारण बन सकता है।

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