
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के सोमवार को अचानक पद से इस्तीफा देने के फैसले ने देश की सियासत में हलचल मचा दी है। भले ही इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया गया हो, लेकिन विपक्षी नेताओं ने इसे एक “सुनियोजित राजनीतिक घटनाक्रम” करार दिया है। पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने भाजपा नेतृत्व पर तीखा हमला करते हुए कहा कि जब धनखड़ निष्पक्षता और सच्चाई के रास्ते पर चले तो उन्हें यह रास्ता रास नहीं आया।
‘स्वाभिमान नहीं पचा पा रही भाजपा’ – पप्पू यादव
पप्पू यादव ने धनखड़ के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “धनखड़ जी जाट समुदाय से आते हैं, वे स्वाभिमानी नेता हैं। भाजपा उनके आत्मसम्मान और स्वतंत्र सोच को सहन नहीं कर सकी। अगर स्वास्थ्य कारण होते तो पहले भी इस्तीफा दिया जा सकता था, लेकिन सत्र शुरू होने के दिन यह कदम साफ इशारा करता है कि कुछ बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा है।”
उन्होंने दावा किया कि भाजपा और आरएसएस के बीच चल रही अंतर्विरोध और ‘ईगो क्लैश’ का यह परिणाम है। “धनखड़ जी बलि का बकरा बने हैं,” पप्पू यादव ने यह भी कहा कि यह इस्तीफा लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी है।
कांग्रेस ने उठाए सवाल, सरकार पर साधा निशाना
राज्यसभा में कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि यह भारतीय राजनीति के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री और भाजपा नेतृत्व को चाहिए था कि वे उन्हें मनाते, लेकिन यह दिखाता है कि पार्टी में असहिष्णुता किस हद तक बढ़ चुकी है।”
रामगोपाल यादव रहे सतर्क, बोले – नहीं जानता अंदर की बात
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने मामले पर सतर्क प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है और वे इस पर कोई अतिरिक्त टिप्पणी नहीं करना चाहते। उन्होंने इतना जरूर कहा कि “अगर कोई संवैधानिक पद छोड़ता है, तो यह हमेशा विचारणीय होता है।”
राजनीतिक हलकों में उठे कई सवाल
धनखड़ का इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब उनके कार्यकाल के दो वर्ष बाकी थे। अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने वाले जगदीप धनखड़ ने सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना त्यागपत्र सौंपते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(ए) का उल्लेख किया।
हालांकि भाजपा की ओर से अभी तक इस मुद्दे पर कोई औपचारिक बयान नहीं आया है, लेकिन विपक्ष इसे एक बड़े राजनीतिक संकेत के रूप में देख रहा है। आने वाले दिनों में यह इस्तीफा न केवल राजनीतिक बहस का विषय रहेगा, बल्कि देश की संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और सत्तारूढ़ दल के भीतर के समीकरणों पर भी नए सवाल खड़े करेगा।

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