
भारत के इतिहास में 14 अगस्त 1947 की तारीख सिर्फ स्वतंत्रता के उत्साह की नहीं, बल्कि लाखों दिलों को चीर देने वाले दर्द की भी याद दिलाती है। इस दिन 200 साल की अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति का सपना तो साकार हुआ, लेकिन साथ ही देश का विभाजन हुआ और भारत तथा पाकिस्तान के रूप में दो नए राष्ट्र अस्तित्व में आए। यह बंटवारा केवल भौगोलिक सीमाओं का नहीं, बल्कि दिलों, परिवारों और पीढ़ियों का भी बंटवारा था।
बंटवारे का दर्द और विस्थापन
विभाजन की कीमत थी लाखों लोगों का विस्थापन, साम्प्रदायिक हिंसा और अपनों को खोने का ग़म। गांव, शहर, खेत-खलिहान, घर-आंगन—सब छूट गए। लाखों लोग अपने जन्मस्थान को छोड़ने पर मजबूर हुए और अनगिनत परिवारों की जिंदगियां हमेशा के लिए बदल गईं। उस दौर में इंसानियत का चेहरा खून, आंसू और लाशों से ढक गया था।
बताया जाता है कि 10 से 20 मिलियन लोग धार्मिक आधार पर विस्थापित हुए। अनुमान है कि करीब 2 लाख से 20 लाख लोगों की जान गई। महिलाएं अपहरण, बलात्कार और जबरन धर्म परिवर्तन की शिकार हुईं। उस समय चलने वाली ट्रेनें अक्सर अपने गंतव्य तक लाशों और घायलों से भरी पहुंचती थीं।

कैसे हुआ था बंटवारा
1947 में ब्रिटिश भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ। मुस्लिम लीग के ‘दो-राष्ट्र सिद्धांत’ के तहत हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लिए अलग-अलग राष्ट्र की मांग की गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और कई अन्य संगठनों ने इस विचार का विरोध किया, लेकिन अंततः बंटवारे को रोका नहीं जा सका।
20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने घोषणा की थी कि 30 जून 1948 तक सत्ता भारतीयों को सौंपी जाएगी, लेकिन तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने यह प्रक्रिया 14-15 अगस्त 1947 को ही पूरी कर दी। सीमाओं को तय करने की जिम्मेदारी सर सिरिल रैडक्लिफ को दी गई, जिन्होंने भारत-पाकिस्तान की सीमा रेखा खींची।

9 जून 1947 को मुस्लिम लीग की बैठक में विभाजन के प्रस्ताव को लगभग सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था। इसके बाद घटनाओं ने इतनी तेजी पकड़ी कि कुछ ही महीनों में सदियों से साथ रहने वाले लोग अलग-अलग देशों में बंट गए।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस की शुरुआत
इस त्रासदी को याद करने और लाखों पीड़ितों को सम्मान देने के लिए केंद्र सरकार ने 2021 में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिन को मनाने का उद्देश्य स्पष्ट किया—1947 में हुए दर्द, यातना और बलिदानों को याद करना और आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाना कि नफरत और विभाजन केवल विनाश लाता है।
इतिहास का सबक
‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि धार्मिक और सांप्रदायिक विभाजन का रास्ता कितनी बड़ी तबाही ला सकता है। यह दिन उन लाखों लोगों की स्मृति में है जिन्होंने अपनी जान गंवाई, अपनों से बिछड़ गए या हमेशा के लिए अपनी मिट्टी छोड़ने पर मजबूर हुए।

भारत-पाकिस्तान विभाजन: प्रमुख घटनाक्रम
- 20 फरवरी 1947 – ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने घोषणा की कि 30 जून 1948 तक सत्ता भारतीयों को सौंप दी जाएगी।
- मार्च 1947 – पंजाब और बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा की शुरुआत। हजारों लोग मारे गए, लाखों विस्थापित हुए।
- 9 जून 1947 – मुस्लिम लीग की बैठक में विभाजन के प्रस्ताव को लगभग सर्वसम्मति से पारित किया गया।
- 3 जून 1947 – ब्रिटिश सरकार ने माउंटबेटन योजना की घोषणा की, जिसमें भारत के विभाजन का खाका पेश किया गया।
- 4 जुलाई 1947 –सर सिरिल रैडक्लिफ को भारत और पाकिस्तान की सीमा रेखा (रैडक्लिफ लाइन) तय करने का कार्य सौंपा गया।
- 14 अगस्त 1947 – पाकिस्तान का गठन। मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरल बने।
- 15 अगस्त 1947 – भारत स्वतंत्र हुआ। पंडित जवाहरलाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री बने।
- 17 अगस्त 1947 – रैडक्लिफ लाइन की घोषणा। पंजाब और बंगाल का आधिकारिक विभाजन हुआ।
- अगस्त–सितंबर 1947 – विभाजन के बाद बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे, हिंसा और पलायन। अनुमानित 1–2 करोड़ लोग विस्थापित और 2–20 लाख लोग मारे गए।
1950 – भारत और पाकिस्तान के बीच नेहरू–लियाकत समझौता, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए।

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