
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एस.आई.आर.) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ठीक पहले, एक जनहित याचिका ने कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। याचिकाकर्ता सतीश कुमार अग्रवाल ने कांग्रेस की मान्यता रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। उनका आरोप है कि कांग्रेस ने चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की विश्वसनीयता को ठेस पहुँचाने की कोशिश की है।
याचिकाकर्ता का दावा है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सांसद राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए गए आरोप “बेहद गंभीर और गैर-जिम्मेदाराना” हैं। याचिका में कहा गया है कि इन नेताओं के “दुष्प्रचार” की एसआईटी (विशेष जांच दल) द्वारा जांच कराई जानी चाहिए और उन पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
संवैधानिक निष्ठा का उल्लंघन
याचिका में दावा किया गया है कि कांग्रेस पार्टी ने भारत के संविधान के प्रति अपनी निष्ठा की शपथ का उल्लंघन किया है। याचिकाकर्ता ने नियमों का हवाला देते हुए कहा है कि कांग्रेस ने अपनी स्थापना के समय संविधान के प्रति वफादारी बनाए रखने का संकल्प लिया था। हालांकि, चुनाव आयोग के खिलाफ चलाया जा रहा उनका अभियान इस शपथ का सीधा उल्लंघन है और आयोग के कार्यों में बाधा डालने की एक गैरकानूनी कोशिश है।
याचिका के अनुसार, “निर्वाचन आयोग को देशभर में मतदाता सूची तैयार करने और उसमें संशोधन करने का विशेष अधिकार प्राप्त है, जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और इसके तहत बनाए गए नियमों के अनुसार है।” याचिकाकर्ता ने कोर्ट से इस मामले में त्वरित सुनवाई की मांग की है।
बिहार एस.आई.आर. मामले से जुड़ा है मामला
यह याचिका ऐसे समय में दायर की गई है जब सुप्रीम कोर्ट खुद चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एस.आई.आर.) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। अदालत इस बात की समीक्षा कर रही है कि क्या बिहार में मतदाता सूची का परीक्षण सही तरीके से हो रहा है।
कांग्रेस लगातार आरोप लगा रही है कि चुनाव आयोग द्वारा की जा रही एस.आई.आर. प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण है और इसके माध्यम से लाखों मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं। कांग्रेस ने इन आरोपों को लेकर चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है।
इस नई याचिका ने इस पूरे मामले को एक नया मोड़ दे दिया है। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर क्या रुख अपनाता है। यह याचिका न केवल कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति को चुनौती दे रही है, बल्कि यह भी सवाल उठा रही है कि क्या राजनीतिक दलों को संवैधानिक संस्थाओं पर आरोप लगाने की सीमा पार करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भविष्य में राजनीतिक दलों के आचरण के लिए एक मिसाल बन सकता है।

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