
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक शिबू सोरेन के निधन से राजनीतिक जगत में शोक की लहर फैल गई है। सोमवार को दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे पिछले एक महीने से बीमार चल रहे थे और किडनी संबंधी समस्याओं के कारण इलाजरत थे।
शिबू सोरेन के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने शिबू सोरेन के पुत्र और झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से फोन पर बात कर अपनी संवेदनाएं प्रकट कीं। प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट के जरिए श्रद्धांजलि देते हुए कहा,”शिबू सोरेन एक जमीनी नेता थे, जिन्होंने जनता के प्रति अटूट समर्पण के साथ सार्वजनिक जीवन में ऊंचाइयों को छुआ। वे आदिवासी समुदायों, गरीबों और वंचितों के सशक्तिकरण के लिए विशेष रूप से समर्पित थे। उनके निधन से दुख हुआ। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से बात की और संवेदना व्यक्त की।”
शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा संघर्ष और जनहित से भरी रही। उन्होंने झारखंड को बिहार से अलग राज्य का दर्जा दिलाने के आंदोलन में निर्णायक भूमिका निभाई। वे झारखंड की राजनीति में ‘गुरुजी’ और ‘दिशोम गुरु’ के नाम से लोकप्रिय रहे। उनका संपूर्ण जीवन आदिवासी अधिकारों, सामाजिक न्याय और क्षेत्रीय अस्मिता की लड़ाई को समर्पित रहा।
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन बिहार के हजारीबाग जिले में हुआ था। 1977 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, हालांकि सफलता 1980 में मिली और इसके बाद वे कई बार संसद पहुंचे। उनके नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने क्षेत्रीय राजनीति को नई दिशा दी।
राज्य निर्माण के बाद वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने (2005, 2008, 2009), लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के चलते वे एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। इसके बावजूद, राज्य के आदिवासी समाज में उनका सम्मान सदैव कायम रहा।
शिबू सोरेन के निधन पर झारखंड सहित पूरे देश के विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनका जाना झारखंड के सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन की एक युगांतकारी क्षति है।

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