
भारत रत्न डॉ. भूपेन हजारिका की 100वीं जन्म जयंती पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जा रही है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भावपूर्ण लेख के माध्यम से भूपेन दा की सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक योगदान को याद किया। अपने आधिकारिक ब्लॉग पर प्रकाशित “भूपेन दा को श्रद्धांजलि” शीर्षक वाले लेख में पीएम मोदी ने उनकी जीवन यात्रा, संगीत साधना और सामाजिक संदेशों को विस्तार से साझा किया।
असम से दुनिया तक गूंजती आवाज
प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि 8 सितंबर भारतीय संस्कृति और संगीत से जुड़े हर व्यक्ति के लिए विशेष दिन है। असम के लिए यह दिन और भी खास है क्योंकि भूपेन हजारिका जैसी महान आवाज इसी धरती से निकली। वे केवल गायक ही नहीं, बल्कि जनता की धड़कन और पीढ़ियों को प्रेरित करने वाले व्यक्तित्व थे।
पीएम मोदी ने कहा कि भूपेन दा के गीत करुणा, एकता, सामाजिक न्याय और मानवीय संवेदनाओं से भरे हुए थे। उनकी आवाज ब्रह्मपुत्र नदी की तरह सीमाओं को लांघकर देश और दुनिया तक पहुंची।
जीवन यात्रा और शिक्षा
भूपेन हजारिका का जन्म 8 सितंबर 1926 को असम के सादिया में हुआ। बचपन से ही वे असम की लोक परंपराओं और कहानी कहने की कला से प्रभावित हुए। छह साल की उम्र में उन्होंने सार्वजनिक मंच पर गाना गाया और उनकी प्रतिभा को असमिया साहित्यकार लक्ष्मीनाथ बेझबरुआ ने पहचाना।
किशोरावस्था तक उनका पहला गीत रिकॉर्ड हो गया। शिक्षा के लिए वे कॉटन कॉलेज और फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) गए। वहां राजनीति विज्ञान पढ़ा, लेकिन संगीत साधना ही उनका जीवन बना। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने काशी से जुड़ाव का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें भूपेन दा की शिक्षा यात्रा से व्यक्तिगत लगाव है।
आगे की पढ़ाई के लिए वे अमेरिका गए, जहां उन्होंने सिविल राइट्स नेता पॉल रोबसन और अन्य विद्वानों से प्रेरणा ली। पॉल रोबसन का गीत ओल्ड मैन रिवर ही भूपेन दा के मशहूर गीत बिश्निराम परोरे का आधार बना। उन्हें अमेरिकी प्रथम महिला एलेनॉर रूजवेल्ट ने भारतीय लोकसंगीत के लिए गोल्ड मेडल दिया।
लोक की आवाज और जन-जागरण
प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि भूपेन हजारिका के गीत गरीबों, नाविकों, चाय बागान मजदूरों, महिलाओं और किसानों की आवाज बने। उन्होंने पुरानी परंपराओं को संजोते हुए आधुनिक दृष्टिकोण दिया। वे केवल संगीतकार ही नहीं, बल्कि रेडियो, रंगमंच, फिल्म और डॉक्यूमेंट्री के भी महारथी थे।
उनके गीत दिल हूम हूम करे और गंगा बहती हो क्यों आज भी लोगों की आत्मा को झकझोरते हैं। असमिया, बंगाली और हिंदी फिल्मों के लिए उन्होंने संगीत रचा और अपनी कला के जरिए एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना को मजबूत किया।
राजनीति और सामाजिक योगदान
भूपेन हजारिका राजनीति से भी जुड़े। वे 1967 में निर्दलीय विधायक बने, लेकिन उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम माना। असम की सांस्कृतिक पहचान गढ़ने और प्रवासी असमियों की आवाज बनने में उनकी बड़ी भूमिका रही।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भूपेन दा का जीवन करुणा और जड़ों से जुड़े रहने की सीख देता है। उन्होंने विविधता में एकता का संदेश दिया और समाज के पिछड़े वर्गों को उम्मीद और ताकत दी।
सम्मान और उपलब्धियां
भूपेन हजारिका को पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड जैसे बड़े सम्मान मिले। 2011 में उनके निधन पर लाखों लोग अंतिम यात्रा में शामिल हुए। उन्हें ब्रह्मपुत्र की ओर मुख करके जलुकबाड़ी पहाड़ी पर विदाई दी गई।
2019 में मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। असम सरकार और भूपेन हजारिका कल्चरल ट्रस्ट उनकी विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। असम के प्रसिद्ध धोला-सदिया पुल का नाम भी भूपेन हजारिका सेतु रखकर उन्हें सम्मानित किया गया है।
पीएम मोदी का संदेश
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लेख के अंत में कहा,“भूपेन दा का जीवन हमें करुणा, सुनने की क्षमता और जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देता है। उनके गीत हमें नदियों, मजदूरों, चाय बागान कामगारों, महिलाओं और युवाओं की याद दिलाते हैं। वे हमें विविधता में एकता का भरोसा दिलाते हैं। भारत ऐसे रत्न से धन्य है। उनके शताब्दी वर्ष पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि उनके संदेशों को फैलाएं और कला व संस्कृति को नई ऊर्जा दें।”
भूपेन हजारिका केवल असम ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के सांस्कृतिक इतिहास में अमिट छाप छोड़ने वाले व्यक्तित्व थे। प्रधानमंत्री मोदी की श्रद्धांजलि इस बात की गवाही है कि उनकी आवाज और संदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके जीवनकाल में थे।

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