
संत प्रेमानंद महाराज पर की गई टिप्पणी को लेकर उठे विवाद के बाद जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने अब इस पर सफाई दी है। उन्होंने कहा है कि उनकी टिप्पणी का गलत अर्थ निकाला गया और उनका इरादा किसी भी संत का अनादर करना नहीं था। स्वामी रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज को ‘पुत्र समान’ बताते हुए कहा कि वह सभी संतों का सम्मान करते हैं।
‘संस्कृत का अध्ययन हर हिंदू का कर्तव्य’
एक पॉडकास्ट के दौरान प्रेमानंद महाराज को चुनौती देने वाले उनके बयान के बाद संत समाज में नाराजगी फैल गई थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा, “मैंने प्रेमानंद महाराज के प्रति किसी भी तरह की अपमानजनक टिप्पणी नहीं की है, वे मेरे पुत्र के समान हैं।” उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका बयान केवल संस्कृत के महत्व पर था। उन्होंने कहा, “मैंने केवल इतना कहा कि सभी को संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। आज कुछ लोग ऐसे हैं, जो बिना संस्कृत के ज्ञान के उपदेश दे रहे हैं।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि संस्कृत और भारतीय संस्कृति देश के दो मजबूत स्तंभ हैं, जिन्हें संरक्षित करना हर हिंदू का कर्तव्य है।
‘मेरे बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया’
स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि उनके बारे में फैलाई जा रही अफवाहें झूठी हैं और उनके बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने कहा, “मैंने प्रेमानंद महाराज या किसी अन्य संत के प्रति कभी अपशब्द नहीं कहा और न ही भविष्य में कहूंगा। मेरे लिए सभी संत सम्मान के अधिकारी हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि वह स्वयं आज भी प्रतिदिन अठारह घंटे अध्ययन करते हैं। उन्होंने कहा, “मैं किसी के खिलाफ नहीं बोल रहा हूं। सभी संत मुझे प्रिय हैं और आगे भी रहेंगे।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या वह प्रेमानंद महाराज से मिलेंगे, तो उन्होंने कहा कि जब भी प्रेमानंद महाराज उनसे मिलने आएंगे, वह उन्हें आशीर्वाद देंगे।
यह बयान स्वामी रामभद्राचार्य की तरफ से विवाद को खत्म करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने साफ कर दिया है कि उनका इरादा किसी को अपमानित करने का नहीं था, बल्कि वह केवल भारतीय संस्कृति और संस्कृत के महत्व पर जोर दे रहे थे। अब देखना यह है कि उनकी इस सफाई के बाद संत समाज की नाराजगी कम होती है या नहीं।

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