
दिल्ली में शनिवार को जंतर-मंतर पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नेतृत्व में वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन किया गया।
प्रदर्शनकारियों ने नए वक्फ कानून को निरस्त करने और पुराने कानून को बहाल करने की मांग की। उनका आरोप है कि यह नया कानून मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक संपत्तियों को खतरे में डालता है।
वक्फ संपत्तियों पर हस्तक्षेप का आरोप
राज्यसभा सांसद फौजिया खान ने प्रदर्शन के दौरान कहा कि हमारे पूर्वजों ने अल्लाह के नाम पर वक्फ संपत्तियां दान की थीं। अब नए कानून के जरिए उनके प्रबंधन में हस्तक्षेप हो रहा है। उन्होंने कृषि कानूनों का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि जनता एकजुट हो, तो कोई भी कानून रद्द हो सकता है। यह प्रदर्शन संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए किया जा रहा है।
मस्जिदों और कब्रिस्तानों पर खतरे का आरोप
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य सैयद कासिम रसूल इलियास ने कहा कि यह कानून हमारी मस्जिदों, इमामबाड़ों और कब्रिस्तानों को छीनने की साजिश है। हम मांग करते हैं कि यह कानून तुरंत रद्द किया जाए।

उन्होंने बताया कि संगठन देशभर में विरोध प्रदर्शनों का दूसरा चरण शुरू कर चुका है, जिसमें मार्च, सभाएं और ज्ञापन सौंपना शामिल है। 16 नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बड़ा कार्यक्रम प्रस्तावित है।
ओवैसी का सरकार पर हमला
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी प्रदर्शन में हिस्सा लिया और सरकार पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हमें सिर्फ 100 लोगों की अनुमति दी गई, जबकि सरकार समर्थक कार्यक्रमों को हजारों की भीड़ की इजाजत मिलती है। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि अगर कोई प्रधानमंत्री की तारीफ में जलसा करता, तो क्या उसे भी इतनी सीमाएं लगाई जातीं?
ओवैसी ने कहा कि नया वक्फ कानून संपत्तियों की रक्षा नहीं कर पाएगा। उन्होंने केंद्र सरकार से पुराने वक्फ कानून को बहाल करने और अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों का सम्मान करने की अपील की।
अमित शाह के बयान का खंडन
गृहमंत्री अमित शाह द्वारा दिए गए मुस्लिम आबादी में तेज़ वृद्धि के बयान पर ओवैसी ने कहा कि मुसलमानों की आबादी में कोई असामान्य वृद्धि नहीं हुई है। यह सिर्फ एक राजनीतिक भ्रम है, जिसका इस्तेमाल समुदाय को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है।

वक्फ कानून को लेकर जंतर-मंतर पर हुआ यह प्रदर्शन केंद्र सरकार के खिलाफ अल्पसंख्यक समुदाय की नाराजगी को दर्शाता है।
आंदोलन के अगले चरण में बड़े कार्यक्रमों और राष्ट्रव्यापी आंदोलनों की योजना के साथ यह मुद्दा आगामी राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन सकता है।

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