
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने देश में मतदाता सूची और चुनावी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच मंगलवार को राज्यसभा में नियम 267 के तहत ‘नोटिस ऑफ मोशन’ प्रस्तुत किया है। इस नोटिस के माध्यम से उन्होंने सदन में शून्यकाल, प्रश्नकाल और अन्य कार्यों को निलंबित कर इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल चर्चा कराने की मांग की है।
सुरजेवाला का यह कदम ऐसे समय में आया है जब पूरे देश में चुनावी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। उन्होंने अपने नोटिस में कहा, “यह सदन चुनावी प्रक्रियाओं की अखंडता के बारे में चिंताओं पर चर्चा करने के लिए प्रासंगिक नियमों को निलंबित करे। सदन को पर्याप्त सुरक्षा उपायों, पारदर्शिता और उचित प्रक्रिया के अभाव में अनिश्चित समुदायों को मतदाता सूची से बाहर किए जाने की गंभीर चिंताओं पर विचार करना चाहिए।”
सुरजेवाला ने अपने प्रस्ताव में साफ तौर पर कहा है कि लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। उन्होंने आगाह किया कि अगर मतदाता सूची से लोगों को हटाने की प्रक्रिया में उचित नियमों का पालन नहीं किया गया, तो यह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर सकता है। इस नोटिस के जरिए उन्होंने सरकार से इस मुद्दे पर तुरंत ध्यान देने और सदन में एक विस्तृत चर्चा करने का आग्रह किया है।
यह कोई पहली बार नहीं है जब सुरजेवाला ने इस मुद्दे को उठाया है। इससे पहले उन्होंने 12 अगस्त और 6 अगस्त को भी राज्यसभा के महासचिव को इसी तरह के नोटिस दिए थे। ये लगातार दिए गए नोटिस दर्शाते हैं कि कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से ले रही है और वह चाहती है कि सरकार इस पर सदन में जवाब दे।
गौरतलब है कि हाल के दिनों में कई राज्यों से मतदाता सूची में अनियमितताओं की खबरें सामने आई हैं, जिनमें नाम हटाए जाने और नए नाम जोड़ने में पारदर्शिता की कमी जैसे आरोप शामिल हैं। विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि इन प्रक्रियाओं में खामियों का फायदा उठाकर सत्ताधारी दल अपनी चुनावी संभावनाओं को मजबूत करने की कोशिश कर सकते हैं। सुरजेवाला का यह कदम इन आरोपों को संसदीय मंच पर उठाने का एक प्रयास है।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्यसभा अध्यक्ष इस ‘नोटिस ऑफ मोशन’ को स्वीकार करते हैं या नहीं। यदि यह प्रस्ताव स्वीकार हो जाता है, तो यह सदन में एक तीखी बहस का कारण बन सकता है, जिसमें सरकार को मतदाता सूची से संबंधित सभी सवालों का जवाब देना होगा। यह बहस न केवल देश की चुनावी प्रक्रिया पर प्रकाश डालेगी, बल्कि भारत के लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने के लिए भी आवश्यक कदम साबित हो सकती है।

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