
बिहार विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने से पहले ही राज्य का सियासी पारा एक बार फिर चढ़ गया है। इस बार यह पारा किसी दलगत राजनीति से नहीं, बल्कि एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के ‘क्षत्रिय राग’ से बढ़ा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता रहे आरके सिंह ने क्षत्रिय समाज को एकजुट होने का आह्वान करते हुए सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। उनका यह बयान न सिर्फ भाजपा के लिए बल्कि बिहार की समग्र राजनीति के लिए एक बड़ा संदेश है, जहां जाति की राजनीति हमेशा से ही निर्णायक रही है।
अस्तित्व की लड़ाई का बिगुल
शारदीय नवरात्र के अवसर पर क्षत्रिय कल्याण संगठन के नए कार्यालय के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए आरके सिंह ने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि अगर उनका समाज अभी भी बंटा रहा, तो आने वाले सालों में उसकी राजनीतिक हैसियत पूरी तरह खत्म हो जाएगी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, “हमारा समाज कई टुकड़ों में बंटा हुआ है, यही वजह है कि किसी भी राजनीतिक दल में हमारी कोई कीमत नहीं है।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एकजुट होने पर कोई भी पार्टी उनकी अनदेखी नहीं कर पाएगी।
‘वोट बैंक’ का खुला ऐलान
आरके सिंह ने स्पष्ट कर दिया कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में क्षत्रिय समाज उसी पार्टी का समर्थन करेगा, जो उन्हें सबसे ज्यादा टिकट और सम्मान देगी। उन्होंने कहा, “हम किसी पार्टी से बंधे नहीं हैं। जो हमारी हिस्सेदारी देगा, हम उसी के साथ खड़े होंगे, चाहे वह महागठबंधन हो या एनडीए।” उनका यह बयान पारंपरिक राजनीतिक समीकरणों को चुनौती देता है, जिसमें भाजपा को राजपूतों का स्वाभाविक समर्थक माना जाता रहा है। उन्होंने समाज से आह्वान किया कि वे हर जिले में जाकर लोगों को जागरूक करें और पता लगाएं कि कौन सी पार्टी क्षत्रिय समाज के हक में खड़ी है।
भाजपा पर सीधा हमला: ‘राजपूत चेहरा नहीं दिखता’
आरके सिंह ने इस दौरान अपनी ही पूर्व पार्टी, भाजपा पर भी जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि पार्टी के मंच पर एक भी राजपूत चेहरा नहीं दिखता। उन्होंने तल्ख लहजे में कहा, “हमें बोलने में कोई शर्म नहीं है। अगर सामने वाला जातिवाद करता है, तो हमें भी अपने अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ेगा।” यह बयान दर्शाता है कि आरके सिंह अब केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक वोटर बनने की वकालत कर रहे हैं, जो अपनी ताकत को पहचानता हो और उसका सही इस्तेमाल करता हो।

बिहार की जातीय राजनीति पर आरके सिंह का विश्लेषण
आरके सिंह ने बिहार की राजनीति में जातिवाद की गहरी जड़ों पर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कुछ नेताओं का उदाहरण देते हुए कहा कि कैसे उन्होंने अपनी जाति को एकजुट कर राजनीतिक ताकत हासिल की। उन्होंने कहा, “रामविलास ने पासवान समाज को एकजुट किया और लालू प्रसाद ने यादवों को जोड़ा।” उन्होंने कुशवाहा समाज की एकजुटता का भी जिक्र किया, जो एकमुश्त वोट करते हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि आज की राजनीति में नेता अपनी जाति के लोगों को संगठित करके वोट हासिल करते हैं, जबकि क्षत्रिय समाज बिखरा हुआ है। उन्होंने कहा, “अगर हमारी पार्टी यादव को खड़ा करेगी और राजद ब्राह्मण को, तो यादव लालू को ही वोट देंगे। यही आज की पार्टी पॉलिटिक्स है, जबकि हम-आप बिखरे हुए हैं।”
भ्रष्टाचार और अपराधी नेताओं पर आरके सिंह का वार
जातीय राजनीति के अलावा, आरके सिंह ने बिहार की एनडीए सरकार में भ्रष्टाचार और भ्रष्ट नेताओं पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि उन्हें भ्रष्ट, अपराधी और चरित्रहीन लोगों से गहरी नफरत है। उन्होंने अपने कार्यकाल का जिक्र करते हुए कहा, “मैं डंके की चोट पर कहता हूं कि जब मैं पद पर था, तो किसी अधिकारी या ठेकेदार को भ्रष्टाचार करने की हिम्मत नहीं हुई।” उन्होंने भ्रष्ट नेताओं को ‘धरती पर बोझ’ बताया और चेतावनी दी कि अगर कोई ‘चू-चपड़’ करेगा, तो वह सबकी बखिया उधेड़ देंगे। उन्होंने कहा कि उनके पास सबका हिसाब है, क्योंकि वह बिहार के गृह सचिव भी रह चुके हैं।
आरके सिंह का यह ‘क्षत्रिय राग’ बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय खोल सकता है। उनका यह बयान न केवल उनके समाज को एकजुट करने का एक प्रयास है, बल्कि यह भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों पर भी दबाव बनाने की कोशिश है कि वे क्षत्रिय समाज की राजनीतिक आकांक्षाओं को अनदेखा न करें। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में आरके सिंह का यह बयान क्या रंग लाता है और क्या क्षत्रिय समाज सचमुच ‘रणनीतिक वोटर’ बनकर बिहार की राजनीति में अपनी नई पहचान बना पाएगा।

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