
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह-सरकार्यवाह अरुण कुमार ने राजस्थान के हरमाड़ा नगर स्थित हेडगेवार बस्ती में आयोजित एक समारोह में विजयादशमी के अवसर पर संघ के शताब्दी वर्ष और राष्ट्र निर्माण में उसकी भूमिका पर गहन विचार व्यक्त किए। उन्होंने जोर देकर कहा कि संघ का मूल उद्देश्य आत्म-प्रचार नहीं, बल्कि राष्ट्र का सशक्तीकरण और गौरव है।
विजयादशमी: केवल त्योहार नहीं, सत्य की विजय का प्रतीक
अरुण कुमार ने विजयादशमी को सिर्फ एक त्योहार से कहीं बढ़कर बताया। उन्होंने इसे आस्था, विश्वास और धार्मिकता का प्रतीक बताया और कहा कि यह दिन हमें याद दिलाता है कि अंततः सत्य और न्याय की अन्याय पर विजय होती है।
उन्होंने भारतीय संस्कृति की अद्वितीय शक्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसकी सबसे बड़ी ताकत इसकी निरंतरता में निहित है। उन्होंने कहा, “जहाँ कई अन्य प्राचीन सभ्यताएं इतिहास से लुप्त हो गई हैं, वहीं भारतीय संस्कृति बार-बार विपरीत परिस्थितियों से ऊपर उठती रही है।” यह भारतीय मूल्यों की अमरता और मजबूती का प्रमाण है।
गांधी और शास्त्री का स्मरण
आरएसएस के सह-सरकार्यवाह ने इस बात पर विशेष बल दिया कि विजयादशमी का दिन इसलिए भी खास है क्योंकि यह महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती का भी अवसर है।
उन्होंने गांधीजी के योगदान को याद करते हुए कहा कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को स्वराज, स्वधर्म और स्वदेशी के मूल्यों से जोड़ा और रामराज्य तथा ग्राम स्वशासन की कल्पना की। वहीं, लाल बहादुर शास्त्री का जीवन सादगी, ईमानदारी और निडर नेतृत्व का एक अनुपम उदाहरण रहा। अरुण कुमार ने इन दोनों महान नेताओं के मूल्यों को राष्ट्र के लिए प्रेरणास्रोत बताया।
शताब्दी वर्ष: आत्मनिरीक्षण और संकल्प का समय
अरुण कुमार ने संघ के आगामी शताब्दी वर्ष का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि संघ का शताब्दी वर्ष केवल उत्सव मनाने का ही समय नहीं है, बल्कि यह आत्मनिरीक्षण, आत्मविश्लेषण और संकल्प का समय है।
उन्होंने स्वयंसेवकों और आम नागरिकों से आग्रह किया कि वे संघ की पिछले 100 वर्षों की यात्रा पर चिंतन करें और आगे आने वाली जिम्मेदारियों पर गंभीरता से विचार करें। यह चिंतन आवश्यक है ताकि संघ भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए और अधिक संगठित तथा सक्षम बन सके।
संघ का मार्ग: धर्म, संस्कृति और समाज का संरक्षण
अरुण कुमार ने संघ के दर्शन को स्पष्ट करते हुए कहा कि संघ का मार्ग धर्म, संस्कृति और समाज के संरक्षण में निहित है। उन्होंने जोर दिया कि संघ की नींव एक सुसंस्कृत, संगठित और आत्मविश्वासी समाज पर टिकी है।
उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के दृष्टिकोण को याद किया। हेडगेवार जी का दृष्टिकोण केवल राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने तक सीमित नहीं था, बल्कि यह स्वतंत्रता से आगे बढ़कर देश में मौलिक सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए था।
अरुण कुमार ने अपने संबोधन का समापन इस मौलिक विचार पर बल देते हुए किया कि एक मजबूत समाज ही एक मजबूत राष्ट्र की नींव होता है। उन्होंने कहा कि संघ इसी नींव को मजबूत करने के लिए कार्य कर रहा है, ताकि भारत विश्व में अपना स्वाभाविक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर सके। उनका यह बयान संघ की विचारधारा और राष्ट्र के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

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