
अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनने के बाद अब सबकी निगाहें उत्तर प्रदेश के काशी और मथुरा पर टिकी हैं, जहां मंदिर निर्माण की मांग को लेकर मामले अदालत में लंबित हैं। इसी बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने गुरुवार को एक बड़ा बयान देकर इस मुद्दे पर संघ की भावी रणनीति को स्पष्ट कर दिया।
आंदोलन से संघ बाहर, स्वयंसेवक स्वतंत्र
संघ शताब्दी समारोह में बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संघ किसी भी आंदोलन में सीधे तौर पर भाग नहीं लेता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि राम मंदिर आंदोलन एकमात्र ऐसा अपवाद था, जिसमें संघ ने पूरा समर्थन दिया था। उन्होंने कहा, “अन्य किसी भी आंदोलन में संघ शामिल नहीं होगा।”
हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि काशी, मथुरा और अयोध्या का हिंदू मानस में विशेष महत्व है। उन्होंने कहा, “हिंदू समाज इसका आग्रह करेगा और इन मामलों में अगुवाई करेगा।” इस बारीक अंतर को समझाते हुए उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से संघ स्वयं इन आंदोलनों में हिस्सा नहीं लेगा, लेकिन उनके स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से भाग ले सकते हैं, “क्योंकि वे हिंदू हैं।”
यह बयान एक तरह से आंदोलनकारियों और समाज के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश है। एक तरफ, यह संघ को कानूनी और राजनीतिक रूप से इन आंदोलनों से दूर रखता है, वहीं दूसरी तरफ यह स्वयंसेवकों को उनकी आस्था के आधार पर इन मुद्दों में शामिल होने की छूट देता है।
‘भाईचारे के लिए बस तीन की बात’
मोहन भागवत ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए एक महत्वपूर्ण अपील भी की। उन्होंने कहा, “इन तीन धार्मिक स्थलों (अयोध्या, काशी, मथुरा) को छोड़कर हर जगह मंदिर और शिवलिंग मत ढूंढो, मैं संघ प्रमुख के रूप में यह बात कह रहा हूं।” उन्होंने आगे कहा, “यह भी होना चाहिए कि चलो सिर्फ तीन मंदिर की बात है, तो ले लो, ये भाईचारे के लिए बड़ा कदम है।” यह बयान इस मुद्दे को एक सीमित दायरे में रखने और एक शांतिपूर्ण समाधान खोजने की संघ की इच्छा को दर्शाता है।
विकसित भारत और आत्मनिर्भरता पर जोर
मंदिर मुद्दे के अलावा, भागवत ने एक ‘विकसित भारत’ के अपने दृष्टिकोण पर भी बात की। उन्होंने कहा कि देश को आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले देश के लिए जीना और मरना सीखना होगा। उन्होंने देशभक्ति और उद्यमिता को राष्ट्र की प्रगति के लिए दो महत्वपूर्ण स्तंभ बताया।
उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि व्यापार आवश्यक है, क्योंकि यह देशों के बीच संबंधों को बनाए रखता है। हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा कि व्यापार दबाव में नहीं होना चाहिए, बल्कि यह स्वतंत्र और आपसी सहमति पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य पर जोर दिया, लेकिन यह भी कहा कि हमें यह समझना चाहिए कि दुनिया परस्पर निर्भरता पर काम करती है।
मोहन भागवत का यह बयान दर्शाता है कि संघ अब सिर्फ धार्मिक-सांस्कृतिक मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह खुद को एक ऐसे संगठन के रूप में पेश कर रहा है जो राष्ट्र-निर्माण के बड़े लक्ष्यों पर केंद्रित है।

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