
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि संघ की प्रार्थना केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि यह एक सामूहिक संकल्प और भाव का प्रतीक है, जिसमें वर्षों की साधना से मंत्र जैसी शक्ति समाहित हो चुकी है। उन्होंने इसे प्रत्यक्ष अनुभव का विषय बताया, जो स्वयंसेवकों की निष्ठा और अनुशासन से पुष्ट होता है।
यह विचार उन्होंने नागपुर के रेशीमबाग स्थित स्मृति भवन परिसर के महर्षि व्यास सभागार में आयोजित एक विशेष लोकार्पण समारोह में व्यक्त किए। इस अवसर पर संघ की स्वरबद्ध प्रार्थना और उसके विभिन्न भारतीय भाषाओं में अर्थ सहित अभिनव ध्वनिचित्रफीति (ऑडियो-वीडियो) का विमोचन किया गया। इस रचना में प्रसिद्ध संगीतकार राहुल रानडे, प्रख्यात गायक शंकर महादेवन और मशहूर उद्घोषक हरीश भिमानी का विशेष योगदान रहा।
प्रार्थना में भाव, अर्थ और शब्द का त्रिविध संगम
डॉ. भागवत ने कहा कि संघ की प्रार्थना संपूर्ण हिन्दू समाज के ध्येय को अभिव्यक्त करती है। इसमें पहला नमस्कार भारत माता को है, उसके बाद ईश्वर को। भारत माता से कुछ मांगा नहीं गया है, बल्कि उनकी सेवा और राष्ट्र के वैभव की प्रतिज्ञा की गई है। ईश्वर से मांगा गया है—शक्ति, भक्ति और समर्पण।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह प्रार्थना केवल शब्दों और अर्थ का मेल नहीं है, बल्कि उससे भारत माता के प्रति प्रेम और भक्ति झलकती है। यही भाव इसे मंत्र का सामर्थ्य प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि शाखा में छोटे-छोटे बाल और शिशु स्वयंसेवक भी प्रार्थना के समय ध्यान और अनुशासन से खड़े रहते हैं। भले ही उन्हें शब्दों का अर्थ न समझ में आए, लेकिन भाव का असर उन पर होता है। “किसी भी शाखा में सबसे चंचल बाल स्वयंसेवक भी प्रार्थना के समय पूरी तन्मयता से खड़ा रहता है। यह भाव की शक्ति है, जिसके लिए किसी विद्वत्ता की जरूरत नहीं होती,” उन्होंने कहा।

संगीत के माध्यम से भाव की अभिव्यक्ति
डॉ. भागवत ने कहा कि शब्द, अर्थ और भाव का सामंजस्य संगीत में कम ही देखने को मिलता है। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने पहली बार यह ट्रैक सुना, तो तुरंत महसूस हुआ कि यह प्रार्थना को एक विशेष वातावरण में ले जाता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इसका निर्माण इंग्लैंड की भूमि पर हुआ, जो अपने आप में विशेष है।
कलाकारों का योगदान और सम्मान
इस अवसर पर उद्घोषक हरीश भिमानी ने भावुक होकर कहा, “भारत माता सबसे महत्वपूर्ण देवी हैं, जिनका मंदिर कहीं नहीं है। यह कार्य मेरे लिए सिर्फ अनुष्ठान नहीं, बल्कि अर्ध्य है।” संगीतकार राहुल रानडे ने बताया कि यह विचार सबसे पहले हरीश भिमानी ने ही उनके सामने रखा था। समारोह में सरसंघचालक ने सभी कलाकारों का विशेष सत्कार किया और उनके योगदान की सराहना की।
बहुभाषीय प्रस्तुति और सांस्कृतिक समावेशिता
समारोह में संघ प्रार्थना के हिंदी और मराठी अनुवादों की चित्रफीति प्रस्तुत की गई। इसे लंदन के रॉयल फिलहारमोनिक ऑर्केस्ट्रा के सहयोग से संगीतबद्ध किया गया है। प्रख्यात गायक शंकर महादेवन ने प्रार्थना को स्वर दिया है, जबकि हरीश भिमानी ने हिंदी अनुवाद का वाचन किया। सुप्रसिद्ध अभिनेता सचिन खेडेकर ने मराठी अनुवाद को स्वर दिया है।
गुजराती, तेलुगु सहित लगभग 14 भारतीय भाषाओं में प्रार्थना के अनुवाद तैयार किए गए हैं, जिनका क्रमशः प्रदर्शन किया जाएगा। यह पहल न केवल संघ की प्रार्थना को व्यापक जनसमूह तक पहुंचाने का माध्यम बनेगी, बल्कि भारत की भाषाई विविधता को भी सम्मान प्रदान करेगी।
संघ की साधना का प्रतीक बनी प्रार्थना
डॉ. भागवत के अनुसार, 1939 से स्वयंसेवक रोज शाखा में इस प्रार्थना का उच्चारण कर रहे हैं। इतने वर्षों की साधना ने इसे मंत्र जैसी शक्ति प्रदान की है। यह केवल कहने की बात नहीं, बल्कि संघ के अनुशासित जीवन का प्रत्यक्ष अनुभव है। उन्होंने कहा कि जब पूरा हिंदू समाज अपनी शक्ति का योगदान देगा, तभी भारत माता परम वैभव तक पहुंचेगी।
इस समारोह ने न केवल संघ की प्रार्थना को एक नए रूप में प्रस्तुत किया, बल्कि उसके भाव, अर्थ और संगीतात्मक सौंदर्य को भी जनमानस तक पहुंचाया। यह आयोजन संघ की सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रभक्ति के भाव को सशक्त रूप में अभिव्यक्त करने वाला बन गया।

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