
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) को आशंका है कि मोदी सरकार कृषि और डेयरी क्षेत्र को खोलने हेतु मुक्त व्यापार समझौते के मामले में अमेरिकी साम्राज्यवाद के सामने समर्पण कर रही है। इसीलिए 13 अगस्त 2025 को “कॉरपोरेट्स भारत छोड़ो” दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दौरान ट्रैक्टर-मोटर वाहन परेड आयोजित कर ट्रंप और मोदी के पुतले जलाए जाएंगे। इसके अलावा 15 अगस्त से चल रहा राष्ट्रीय अभियान, 26 नवंबर 2025 को विशाल मजदूर-किसान प्रदर्शन में बदल जाएगा।
संयुक्त किसान मोर्चा का आरोप है कि सरकार अमेरिकी दबाव में कृषि, डेयरी और खाद्य क्षेत्र को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए खोल रही है, जिससे देश की संप्रभुता और किसानों की आजीविका खतरे में है।
SKM की बैठक में बना आंदोलन का खाका
20 जुलाई 2025 को SKM की जनरल बॉडी बैठक आयोजित हुई, जिसमें 12 राज्यों से 106 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। अध्यक्ष मंडल में अशोक धावले, दर्शन पाल, युधवीर सिंह, अशिष मित्तल, बडगलपुरा नागेन्द्र सहित कई वरिष्ठ नेता शामिल रहे। बैठक में आंदोलन की रणनीति और भावी कार्यक्रम तय किए गए।
आंदोलन की प्रमुख तारीखें:
- 30 जुलाई: पंजाब में सभी जिलों में ट्रैक्टर रैली
- 13 अगस्त: ‘कॉरपोरेट्स भारत छोड़ो’ दिवस – ट्रंप और मोदी के पुतले जलाए जाएंगे
- 15 अगस्त से 26 नवंबर: राष्ट्रीय जनजागरण अभियान
- 24 अगस्त: पंजाब में भूमि पूलिंग नीति के खिलाफ महापंचायत
- 26 नवंबर: किसान आंदोलन की 5वीं वर्षगांठ पर मजदूर-किसान महापरदर्शन
आंदोलन के प्रमुख मुद्दे और मांगें:
- अमेरिका से संभावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का विरोध
- कृषि, डेयरी और खाद्य बाजारों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा बढ़ेगा
- GM फूड्स और सस्ते आयात से स्थानीय किसान होंगे प्रभावित
- 10 साल पुराने ट्रैक्टरों पर रोक का विरोध
- किसानों के संसाधनों पर सीधा प्रहार
- पर्यावरणीय चिंता के नाम पर किसानो को हाशिए पर ले जाने की साजिश
- स्मार्ट मीटर और ऊंची बिजली दरें
- ग्रामीण क्षेत्रों में मुफ्त 300 यूनिट बिजली की मांग
- निजीकरण के विरोध में आंदोलन
- एमएसपी की कानूनी गारंटी और कर्जमाफी
- सभी फसलों के लिए C2 + 50% फॉर्मूले पर MSP
- आत्महत्या रोकने के लिए पूर्ण कर्जमाफी
- भूमि अधिग्रहण का विरोध और पुनर्वास की मांग
- 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून का सख्त पालन
- बिना पुनर्वास के कोई अधिग्रहण नहीं
- क्षेत्रीय संघर्षों के साथ एकजुटता

संयुक्त किसान मोर्चा ने कई राज्यों में चल रहे जन आंदोलनों का समर्थन किया है और एक साथ मिलकर लड़ाई लड़ने की बात एकबार फिर से दोहरायी है…
- सिंगरौली (MP): आदिवासी किसानों की ज़मीन बचाने की लड़ाई
- सोहना (हरियाणा): उचित मुआवजा दिए बिना ज़मीन अधिग्रहण
- हिमाचल: सेब किसानों के खिलाफ वन विभाग की कार्रवाई
- कर्नाटक: देवनहल्ली में 1198 दिनों के संघर्ष के बाद किसानों की जीत
संयुक्त किसान मोर्चा की संगठनात्मक समन्वय और अभियान रणनीति
SKM ने तय किया है कि यह राष्ट्रीय अभियान केवल किसान संगठनों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, कृषि श्रमिक यूनियनों और विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ समन्वय किया जाएगा। आंदोलन का फोकस इन बातों पर होगा:
- मजदूर-किसान एकता
- हिंदू-मुस्लिम एकता
- धर्मनिरपेक्ष और वर्गीय एकता
संयुक्त किसान मोर्चा की अन्य मांगें
- वन्यजीवों के हमलों से हुए नुकसान का मुआवज़ा
- उर्वरक सब्सिडी की बहाली
- नकली खाद-कीटनाशकों के खिलाफ कार्रवाई
- भूमि उपयोग नीति का लागू होना
- बुलडोज़र राज समाप्त हो
- हाई-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन का विरोध
- आर्थिक न्याय के लिए कर नीति में बदलाव की मांग
- शीर्ष 1% अमीरों पर 2% संपत्ति कर
- कॉरपोरेट टैक्स में वृद्धि
- उत्तराधिकार कर और संपत्ति कर की पुनर्बहाली
- जीडीपी का कम से कम 7% हिस्सा सामाजिक कल्याण योजनाओं पर खर्च किया जाए
लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला: SKM की आपत्ति
बिहार में मतदाता सूची संशोधन की आलोचना करते हुए कहा कि इससे गरीबों को मताधिकार से वंचित करने की आशंका दिख रही है। साथ ही साथ बिहार पुलिस के एडीजी पर किसानों को ‘सुपारी किलर’ कहने पर कार्रवाई की मांग की है।
SKM का बिहार अभियान
सितंबर 2025 में SKM का नेतृत्व बिहार का दौरा करेगा। वहां भाजपा-एनडीए की “कॉरपोरेट-परस्त” नीतियों का पर्दाफाश कर जन जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।
आंदोलन की व्यापकता
यह आंदोलन न केवल किसानों की समस्याओं को उजागर करेगा बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था, सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता के लिए व्यापक संघर्ष का स्वरूप ग्रहण करेगा। 26 नवंबर को दिल्ली और राज्य की राजधानियों में होने वाला संयुक्त प्रदर्शन इसका निर्णायक चरण होगा।
संयुक्त किसान मोर्चा ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह केवल कृषि क्षेत्र की लड़ाई नहीं लड़ रहा, बल्कि यह आंदोलन भारत की आर्थिक, सामाजिक और लोकतांत्रिक आत्मा की रक्षा के लिए है। ‘कॉरपोरेट्स भारत छोड़ो’ का नारा सिर्फ नारा नहीं, एक जन चेतना है — जो सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ एक संगठित प्रतिकार का रूप ले रहा है।

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