
प्रसिद्ध रामकथा वाचक और आध्यात्मिक गुरु मोरारी बापू ने शनिवार को गोपनाथ में चल रही रामकथा के दौरान सनातन धर्म और मंदिर संस्कृति के संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म सिर्फ धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत और पहचान है, और इसकी रक्षा करना हर भारतीय की जिम्मेदारी है। हमें अपने धर्म और परंपराओं को जीवित रखना है, क्योंकि यही हमारी असली जड़ें हैं।
मंदिरों के संरक्षण में भागीदारी की अपील
रामकथा के दौरान मोरारी बापू ने श्रोताओं से अपील की कि वे अपने-अपने गांवों और शहरों में प्राचीन मंदिरों की मरम्मत, संरक्षण और नवीन निर्माण में भाग लें। उन्होंने विशेष रूप से कहा कि राम, कृष्ण, शिव, भवानी, हनुमान और गणेश इन सभी की दिव्यता सनातन धर्म की आत्मा है। इनके मंदिर केवल ईंट-पत्थर के ढांचे नहीं, बल्कि हमारी आध्यात्मिक चेतना के केंद्र हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि श्री चित्रकूट धाम तलगाजरडा की ओर से मंदिर संरक्षण के लिए 1.25 लाख रुपए की सहायता राशि की घोषणा पहले ही की जा चुकी है।

आध्यात्मिकता और भक्ति का वास्तविक अर्थ
मोरारी बापू ने स्पष्ट किया कि भक्ति का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि आध्यात्मिक सिद्धांतों को समझना और जीवन में उतारना है।
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ धार्मिक धाराएं हिंदू देवताओं की भूमिका को लेकर भ्रम फैला सकती हैं, लेकिन सनातन धर्म में भगवान राम, कृष्ण, शिव और माता भवानी परम दिव्यता के प्रतीक हैं।
चाणक्य और धर्म की वर्तमान प्रासंगिकता
बापू ने चाणक्य के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि आज के समाज में स्वर्ग और नरक के संकेत स्पष्ट रूप से नजर आते हैं।
यह समय है जब हम धर्म की ओर लौटें और अपने संस्कारों को अपनाएं। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक रूप से जागरूक समाज ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकता है।
अयोध्या राम मंदिर और राष्ट्रीय चेतना
मोरारी बापू ने अयोध्या में 500 वर्षों बाद रामलल्ला की मूर्ति स्थापना को आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि वे उस उस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी रहे हैं, जहां हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेता वहां उपस्थित थे। लेकिन कुछ लोगों ने अपनी प्रतिबद्धताओं का हवाला देते हुए दर्शन करने से परहेज़ किया।
बापू ने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या राम, कृष्ण या माता भवानी के मंदिरों में वास्तव में हर किसी ने श्रद्धा से दर्शन किए हैं? उन्होंने इसे धार्मिक चेतना की परीक्षा बताया।
सनातन धर्म की रक्षा –हर भक्त का कर्तव्य
अपने प्रवचनों के दौरान मोरारी बापू ने कहा कि हमें किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना, लेकिन सनातन धर्म की रक्षा करना हमारा धर्म है। आज के युग में जब भ्रम, द्वेष और असत्य का बोलबाला है, तब धार्मिक मूल्यों और आध्यात्मिक विरासत को जीवित रखना अत्यंत आवश्यक है।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि संस्कार, सहिष्णुता और संयम सनातन धर्म की बुनियाद हैं, जिन्हें आत्मसात कर हम समाज को बेहतर बना सकते हैं।

965वीं रामकथा: श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब
गोपनाथ में आयोजित यह कथा, मोरारी बापू की छह दशकों की आध्यात्मिक यात्रा की 965वीं कथा है। देशभर से हजारों श्रद्धालु इसमें भाग ले रहे हैं। श्रद्धा, शांति और भक्ति के इस आयोजन ने न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा दी, बल्कि सनातन धर्म के मूलभूत मूल्यों को फिर से केंद्र में ला दिया।
मोरारी बापू के संदेश ने स्पष्ट कर दिया कि सनातन धर्म केवल पूजा नहीं, जीवन का दर्शन है। गोपनाथ की यह रामकथा एक बार फिर यह याद दिलाती है कि परंपरा, संस्कृति और धर्म की रक्षा न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को एक आध्यात्मिक और नैतिक धरोहर देने का अवसर भी है।

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