
सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवादों से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि पति-पत्नी के बीच गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत अदालत में सबूत के तौर पर स्वीकार्य है और इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
यह फैसला सोमवार को जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सुनाया। अदालत ने कहा कि यदि पति-पत्नी उस स्थिति में पहुंच जाते हैं कि वे एक-दूसरे पर नजर रखने के लिए बातचीत तक रिकॉर्ड करने लगते हैं, तो यह इस बात का संकेत है कि उनके रिश्ते में विश्वास की गंभीर कमी आ चुकी है।
पीठ ने कहा, “अगर विवाह उस मुकाम पर पहुंच जाए जहाँ पति-पत्नी गुप्त रिकॉर्डिंग कर रहे हैं, तो यह अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि संबंध टूटने की कगार पर हैं। ऐसे मामलों में यह रिकॉर्डिंग साक्ष्य अधिनियम के तहत वैध है और निजता का हनन नहीं माना जाएगा।”
हाईकोर्ट का आदेश खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले को भी पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि पति-पत्नी के बीच हुई निजी बातचीत की गुप्त रिकॉर्डिंग से निजता के अधिकार का हनन होता है और इसे सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा-122 में पति-पत्नी के बीच बातचीत की गोपनीयता को लेकर कोई विशेष सुरक्षा नहीं दी गई है।
निजता अधिकार पर कोई असर नहीं
फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया कि इस तरह की रिकॉर्डिंग संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रदत्त निजता के अधिकार से जुड़ी नहीं है। अदालत ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम में इसका स्पष्ट प्रावधान मौजूद है और इसलिए इसे वैध साक्ष्य माना जाएगा।
दलीलों को सिरे से नकारा
सुप्रीम कोर्ट ने उन दलीलों को भी खारिज कर दिया, जिनमें कहा गया था कि इस तरह के साक्ष्य को अनुमति देने से पति-पत्नी के बीच अविश्वास और जासूसी की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा और घरेलू सौहार्द प्रभावित होगा। पीठ ने कहा कि यह तर्क तर्कसंगत नहीं है क्योंकि गुप्त रिकॉर्डिंग खुद इस बात का संकेत है कि विश्वास पहले ही समाप्त हो चुका है।
इस फैसले को वैवाहिक विवादों से जुड़े मामलों में मील का पत्थर माना जा रहा है क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि अदालत साक्ष्य के तौर पर तथ्यात्मक पहलुओं को प्राथमिकता देगी, चाहे वे कैसे भी संकलित किए गए हों, बशर्ते वे साक्ष्य अधिनियम के तहत मान्य हों।

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