
उत्तरपाड़ा राजा पेरिमोहन कॉलेज में गुरुवार को स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने भ्रष्टाचार के खिलाफ और छात्र संघ चुनाव की मांग को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया। कॉलेज के मुख्य द्वार पर किए गए इस प्रदर्शन में एसएफआई ने कॉलेज प्रशासन और राज्य सरकार की छात्र राजनीति में निष्क्रियता पर सवाल उठाए।
एसएफआई ने लगाए अवैध यूनियन के आरोप
एसएफआई के हुगली जिला सचिव अर्णब दास ने कॉलेजों में छात्र संघ चुनाव ना होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “2017 के बाद से किसी भी कॉलेज में चुनाव नहीं हुआ है। इसके बावजूद कई कॉलेजों में अवैध यूनियन सक्रिय हैं।” उन्होंने उत्तरपाड़ा राजा पेरिमोहन कॉलेज का उदाहरण देते हुए बताया कि यहां तृणमूल छात्र परिषद के नेता अभी भी कॉलेज के कामों में हस्तक्षेप कर रहे हैं, जबकि यूनियन रूम हाईकोर्ट के आदेश से बंद हैं।
तृणमूल छात्र परिषद का पलटवार
एसएफआई के आरोपों पर तृणमूल छात्र परिषद (टीएमसीपी) के हुगली-श्रीरामपुर जिला अध्यक्ष शुभदीप मुखर्जी ने जवाब देते हुए कहा कि कॉलेज में विश्वविद्यालय की परीक्षा चल रही थी, ऐसे में माइक बजाकर प्रदर्शन करना अनुचित था। उन्होंने सवाल किया कि, “इससे छात्रों को हुई असुविधा की जिम्मेदारी कौन लेगा?”
उन्होंने आगे कहा कि छात्र संघ चुनाव को लेकर तृणमूल छात्र परिषद पूरी तरह से तैयार है। “हमारे राज्य अध्यक्ष टी. भट्टाचार्य ने स्पष्ट किया है कि अगर हाईकोर्ट आज आदेश दे, तो हम आज ही चुनाव के लिए तैयार हैं,” उन्होंने कहा।
कसबा लॉ कॉलेज की घटना पर सफाई
प्रदर्शन के दौरान कसबा लॉ कॉलेज से जुड़े एक पुराने विवाद पर भी चर्चा हुई, जिस पर शुभदीप मुखर्जी ने कहा कि दोषियों को 12 घंटे के भीतर पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि “मनोजीत को किसी का समर्थन नहीं है और उसके कार्यों से पूरी छात्र इकाई को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए।”
छात्र राजनीति पर टकराव जारी
जहां एसएफआई ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने और कॉलेज परिसरों को पारदर्शी बनाने की मांग दोहराई, वहीं तृणमूल छात्र परिषद ने खुद को नियमों के तहत काम करने वाला संगठन बताया और प्रदर्शन की टाइमिंग को लेकर आपत्ति जताई।
स्थिति साफ है कि हुगली के कॉलेज परिसरों में छात्र राजनीति को लेकर बहस तेज होती जा रही है, और छात्र संघ चुनाव अब एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। सभी की नजरें अब हाईकोर्ट और राज्य सरकार के निर्णय पर टिकी हैं, जिनसे यह तय होगा कि क्या छात्र राजनीति को फिर से लोकतांत्रिक दिशा मिलेगी या नहीं।

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