
ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा यूनिवर्सिटी में बीडीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा द्वारा आत्महत्या किए जाने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए विभागाध्यक्ष सहित चार प्रोफेसरों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। साथ ही, इन शिक्षकों को कैंपस में प्रवेश करने पर रोक लगा दी गई है और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर तीन दिन में जवाब देने को कहा गया है।
सामाजिक संगठनों और छात्रों में आक्रोश
घटना के बाद से यूनिवर्सिटी परिसर में छात्रों और सामाजिक संगठनों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। विभिन्न छात्र संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा प्रदर्शन किए जा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने जिला प्रशासन से मामले की निष्पक्ष जांच कराने और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपते हुए प्रशासनिक जांच समिति के गठन की भी मांग की है।
पुलिस जांच में आई तेजी, विभाग सील
पुलिस प्रशासन ने भी मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच प्रक्रिया में तेजी लाई है। अब तक हॉस्टल वार्डन सहित संबंधित विभाग के कई कर्मचारियों से पूछताछ की जा चुकी है। छात्रा के सुसाइड नोट में दो प्रोफेसरों के नाम स्पष्ट रूप से लिखे गए हैं, जिन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। वहीं अन्य संदिग्ध कर्मचारियों से पूछताछ जारी है।
पुलिस ने छात्रा के विभाग को सील कर दिया है और स्पष्ट किया है कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, विभाग दोबारा नहीं खोला जाएगा। साथ ही, पुलिस ने छात्रा के मोबाइल, लैपटॉप और सीसीटीवी फुटेज को भी कब्जे में लेकर फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा है।
सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस बल तैनात
विश्वविद्यालय परिसर और छात्रावास में तनाव की स्थिति को देखते हुए पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। परिसर के बाहर और छात्रावास के आसपास अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है ताकि किसी भी अप्रिय घटना से निपटा जा सके।
सुसाइड नोट में लगाए गए गंभीर आरोप
गौरतलब है कि गुरुग्राम निवासी बीडीएस की छात्रा ने बीते शुक्रवार को छात्रावास में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी। घटनास्थल से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है, जिसमें उसने विभाग के शिक्षकों और स्टाफ पर मानसिक उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए हैं। छात्रा के आत्मघाती कदम ने विश्वविद्यालय प्रशासन और पुलिस को कठघरे में ला खड़ा किया है।
इस पूरे मामले पर निगाहें टिकी हैं कि जांच के बाद और कौन-कौन जिम्मेदार पाया जाता है और क्या विश्वविद्यालय प्रशासन आंतरिक सिस्टम में बदलाव करता है।

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