
झारखंड के महानायक, आदिवासी समुदाय के आवाज और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन को मंगलवार को उनके पैतृक गांव नेमरा में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाने वाली है। 81 वर्षीय इस वरिष्ठ नेता का निधन सोमवार सुबह दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में किडनी संबंधी बीमारी के चलते हुआ। उनके अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री से लेकर विपक्षी नेताओं तक ने अपनी श्रद्धांजलि दी और पूरे झारखंड ने “गुरुजी” को अश्रुपूरित नेत्रों से अलविदा कहा।
शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार बोकारो जिले के बड़का नाला के पास उनके गांव नेमरा में संपन्न हुआ। उनके छोटे बेटे बसंत सोरेन ने उन्हें मुखाग्नि दी। अंतिम यात्रा में हजारों की संख्या में समर्थक, राजनीतिक कार्यकर्ता, आदिवासी समुदाय के सदस्य और आम लोग शामिल हुए। ‘दिशोम गुरु’ के रूप में पहचाने जाने वाले शिबू सोरेन को केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा का प्रतीक माना जाता रहा है।

देशभर से उमड़ा स्नेह और श्रद्धांजलि
इस मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी सहित कई प्रमुख नेता अंतिम विदाई में शामिल होने वाले हैं। इसके पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके परिवार से मुलाकात कर शोक संवेदना व्यक्त की।
झारखंड सरकार ने तीन दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है। 4 अगस्त से 6 अगस्त तक सभी सरकारी कार्यालयों और स्कूलों में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा और कोई भी सरकारी आयोजन नहीं होगा। राजधानी रांची से लेकर गांवों तक, पोस्टर, बैनरों और श्रद्धांजलि सभाओं के जरिए लोगों ने शिबू सोरेन को याद किया।
“हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन हमारे दिलों में हमेशा रहेंगे”
झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रबींद्रनाथ महतो ने उन्हें “महामानव” की उपाधि दी और कहा कि उनका व्यक्तित्व अतुलनीय था। उन्होंने कहा, “गुरुजी का जाना केवल झारखंड ही नहीं, पूरे भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वे हमारे लिए एक मार्गदर्शक, एक अभिभावक और एक प्रेरणा थे।”

भाजपा नेता लोबिन हेम्ब्रोम ने भावुक होकर कहा, “आज जो कुछ भी हूं, गुरुजी की वजह से हूं। उन्होंने राजनीति का ककहरा सिखाया, आदिवासी समाज को संगठित किया, और जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए हमेशा आगे रहे। उनकी कमी हमेशा खलेगी।”
झारखंड के निर्माण में अमूल्य योगदान
शिबू सोरेन उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने झारखंड को एक अलग राज्य बनाने के आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने आदिवासी समाज की पहचान, अधिकार और सम्मान के लिए दशकों तक संघर्ष किया। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे और संसद में भी उन्होंने राज्य की आवाज बुलंद की।
उनका संपूर्ण जीवन संघर्ष और सेवा का पर्याय रहा। चाहे वह झारखंड आंदोलन का नेतृत्व हो, आदिवासियों की भूमि की रक्षा हो या शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर किए गए प्रयास — हर पहलु में शिबू सोरेन ने खुद को एक जननायक के रूप में स्थापित किया।

जीवन से विदाई, लेकिन विचारों से अमर
शिबू सोरेन का जाना केवल एक नेता का जाना नहीं है, बल्कि एक युग का अंत है। लेकिन उनका सादगीपूर्ण जीवन, संघर्षशील रवैया और जनहित में उठाए गए कदम उन्हें हमेशा के लिए लोगों के दिलों में जीवित रखेंगे। उनकी अंतिम यात्रा ने यह सिद्ध कर दिया कि उन्होंने न केवल राजनीति में, बल्कि जन-मानस में एक अमर स्थान प्राप्त किया है।
झारखंड आज भले ही एक नेता को खो बैठा हो, लेकिन उनके विचार, उनका मार्गदर्शन और उनकी प्रेरणा सदैव इस धरती पर जीवंत रहेंगे। गुरुजी की अंतिम यात्रा ने यह दिखा दिया कि सच्चे जननायक कभी नहीं मरते — वे इतिहास में अमर हो जाते हैं।
झारखंड ने आज अपने सबसे प्रिय सपूत को विदाई दी, लेकिन उनके विचारों और संघर्ष की चिंगारी भविष्य के कई नेताओं और आंदोलनों को प्रेरित करती रहेगी।

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