
मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में शुक्रवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। 17 वर्षों तक चली लंबी कानूनी प्रक्रिया, कई जांच एजेंसियों की रिपोर्ट्स और सैकड़ों गवाहों की गवाही के बाद अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। इस फैसले ने एक बार फिर न्यायिक व्यवस्था में जन विश्वास को मजबूत किया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय सच्चाई की जीत है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस पूरे मामले को निजी स्वार्थ और राजनीतिक हितों के चलते जानबूझकर उलझाया गया था। उन्होंने कहा, “मालेगांव विस्फोट मामले में कुछ लोगों ने हिंदू समाज और धर्म को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन आज अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि ऐसे आरोप निराधार थे।”
इसी तरह विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के राष्ट्रीय महासचिव सुरेंद्र जैन ने भी अदालत के फैसले को ऐतिहासिक बताया और कहा कि अब उस झूठ का अंत हो गया है जिसे कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने दो दशकों तक फैलाया। उन्होंने तीखा सवाल उठाते हुए कहा, “क्या चंद जिहादियों को बचाने के लिए पूरे हिंदू समाज को बदनाम करना सही था? क्या संतों को जेल में डालना राजनीतिक न्याय था?”
उन्होंने कांग्रेस पर सीधा हमला करते हुए राहुल गांधी सहित सभी कांग्रेसी नेताओं से माफी की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि ‘भगवा आतंकवाद’ और ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसे शब्दों को गढ़ने वालों को न्याय के कठघरे में खड़ा किया जाए।
जांच और मुकदमे की लंबी प्रक्रिया
गौरतलब है कि 2008 में हुए इस विस्फोट के बाद जांच एजेंसियों ने महाराष्ट्र एटीएस और फिर एनआईए के जरिए गहन जांच की। इस केस में तीन चार्जशीट दाखिल की गईं, जिनमें एक पूरक चार्जशीट भी शामिल थी। लेकिन वर्षों तक चले इस मुकदमे में समय-समय पर तथ्यों की कमी, गवाहों के बदलते बयान और राजनीतिक बयानबाजियों ने मामले को जटिल बना दिया।
न्याय व्यवस्था पर विश्वास की पुनर्स्थापना
अदालत के इस फैसले ने एक बार फिर यह साबित किया है कि न्यायिक प्रक्रिया भले ही धीमी हो, लेकिन अंततः सच्चाई को उजागर करती है। यह फैसला न केवल उन निर्दोष लोगों के लिए राहत की खबर है, जिन्होंने सालों तक अपमान और अनिश्चितता का सामना किया, बल्कि यह एक संदेश भी है कि किसी भी समाज को राजनीतिक लाभ के लिए निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए।
इस निर्णय के साथ मालेगांव विस्फोट केस का एक बड़ा अध्याय समाप्त हुआ, लेकिन इससे जुड़े कई सवाल अब भी देश के सामने हैं—क्या इस तरह के मामलों का राजनीतिकरण रुक पाएगा? और क्या अब असली दोषियों की पहचान हो सकेगी? यह दिन भारतीय लोकतंत्र और न्यायिक प्रणाली के लिए एक मील का पत्थर है, जहां सच्चाई ने राजनीति पर जीत दर्ज की।

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