
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को पुनः पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर दायर याचिका पर आज (शुक्रवार) सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। यह मामला राजनीतिक और संवैधानिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह संघवाद की अवधारणा और नागरिक अधिकारों से जुड़ा है।
याचिकाकर्ताओं की दलील
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने यह याचिका भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई के समक्ष प्रस्तुत की थी। याचिका जहूर अहमद भट और कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक की ओर से दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि राज्य का दर्जा बहाल करने में लगातार हो रही देरी जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है और संघवाद के मूल सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
आवेदकों का तर्क है कि संविधान के मूल ढांचे में संघवाद को विशेष स्थान प्राप्त है, और समयबद्ध सीमा के भीतर राज्य का दर्जा बहाल न करना इसी मूल संरचना को क्षति पहुंचाता है।
केंद्र का पूर्व आश्वासन
याचिका में यह भी उल्लेख है कि 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से आश्वासन दिया था कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस मिलेगा। हालांकि, उस समय बहाली के लिए कोई स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई थी।
अदालत ने पुनर्गठन अधिनियम की धारा 14 के तहत चुनाव आयोग को आदेश दिया था कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव 30 सितंबर 2024 तक कराए जाएं और राज्य का दर्जा “शीघ्रातिशीघ्र” बहाल किया जाए।
समय-सीमा को लेकर अनिश्चितता
पिछली सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल मेहता ने स्पष्ट किया था कि केंद्र सरकार फिलहाल राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए कोई निश्चित तारीख नहीं बता सकती और इस प्रक्रिया में “कुछ समय” लगेगा। यह बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर की राजनीति और शासन व्यवस्था लंबे समय से परिवर्तन की प्रतीक्षा में है।
पुनर्विचार याचिकाएं भी खारिज
मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि रिकॉर्ड में कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं है। साथ ही, इन मामलों को खुली अदालत में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से भी इनकार कर दिया था।
राजनीतिक महत्व
यह सुनवाई ऐसे समय हो रही है जब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तैयारियां और राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग, दोनों ही मुद्दे राजनीतिक बहस के केंद्र में हैं। विपक्षी दल केंद्र पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं, जबकि सरकार का कहना है कि सभी कदम सुरक्षा और स्थिरता को ध्यान में रखकर उठाए जाएंगे।

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