
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का गुस्सा एक बार फिर मीडिया पर फूट पड़ा है। उन्होंने प्रिंट मीडिया पर सीधा हमला करते हुए आरोप लगाया कि बिहार के अखबार अब पत्रकारिता धर्म भूल चुके हैं और पूरी तरह सरकार के इशारे पर चल रहे हैं।
तेजस्वी ने आरोप लगाया कि राज्य के प्रमुख अखबारों में सरकार के खिलाफ विपक्ष की बातों को न तो जगह मिलती है और न ही सही तरीके से प्रकाशित किया जाता है। उन्होंने कहा कि, “हमने कई बार प्रिंट मीडिया से निवेदन किया कि बिहार की सबसे बड़ी पार्टी और विपक्षी नेताओं को सरकार के जनविरोधी फैसलों पर अपनी बात रखने का मौका दिया जाए, लेकिन दुर्भाग्यवश, अखबारों में सिर्फ सत्ता पक्ष के प्रवक्ताओं के बयान छपते हैं।”
तेजस्वी ने यह भी कहा कि कई बार विपक्षी नेताओं के सवालों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि सत्ताधारी दल के प्रवक्ताओं की प्रतिक्रिया को प्रमुखता दी जाती है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “कमाल की बात ये है कि जिन सवालों के जवाब में सरकार के चिंटू-पिंटू प्रवक्ताओं की प्रतिक्रिया छापी जाती है, उन सवालों को ही अखबारों में जगह नहीं मिलती।”
राजद नेता यहीं नहीं रुके। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर मीडिया का यह रवैया जारी रहा तो वे सभी पक्षपाती मीडिया संस्थानों का नाम लेकर जनता से उनके बहिष्कार की अपील करेंगे। उन्होंने कहा, “अब बहुत हो गया। करोड़ों न्यायप्रिय और संविधान प्रेमी लोग बिहार में हैं, जो मीडिया के इस विशुद्ध व्यापारिक, पक्षपाती और अलोकतांत्रिक रवैये से आहत हैं।”
तेजस्वी यादव ने जनता से अपील की कि वे ऐसे मीडिया संस्थानों के उत्पादों का बहिष्कार करें जो लोकतंत्र की मूल आत्मा – निष्पक्षता और सच्चाई – से समझौता कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जनता अपने पैसे से उन अखबारों की तिजोरी न भरे जो सत्ता के तलवे चाटते हैं।
इस तीखे बयान के बाद बिहार की राजनीति में मीडिया की भूमिका पर बहस तेज हो गई है। तेजस्वी के तेवर यह संकेत दे रहे हैं कि आने वाले चुनाव में मीडिया के खिलाफ भी एक सियासी मोर्चा खुल सकता है।

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