
महाराष्ट्र की राजनीति में बुधवार को एक बार फिर सियासी पारा तब चढ़ा जब शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) अध्यक्ष राज ठाकरे से मुलाकात की। यह कोई सामान्य पारिवारिक भेंट नहीं थी, बल्कि पिछले कुछ महीनों में दोनों नेताओं की लगातार चौथी मुलाकात थी, जिसने राज्य में राजनीतिक हलचल को और तेज़ कर दिया है। इन मुलाकातों को स्थानीय निकाय चुनावों, खासकर बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव से पहले एक बड़े राजनीतिक समीकरण की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है।
पिछले दो दशकों से अलग राह पर चल रहे इन दो भाइयों के बीच यह बढ़ती नज़दीकी कई सवाल खड़े करती है: क्या वे बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए एक साथ आ रहे हैं? क्या यह एक तात्कालिक चुनावी मजबूरी है या स्थायी राजनीतिक साझेदारी की शुरुआत? इन मुलाकातों ने जहाँ एक ओर भाजपा को चिंतित कर दिया है, वहीं यह भी साफ कर दिया है कि ठाकरे बंधु अपने खोए हुए गढ़ को फिर से हासिल करने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे।
गठबंधन की पृष्ठभूमि और मजबूरी
राज ठाकरे ने 2005 में शिवसेना से अलग होकर मनसे की स्थापना की थी, जिसका एक बड़ा कारण उद्धव ठाकरे से उनकी राजनीतिक मतभेद था। तब से दोनों दल एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे। हालाँकि, 2024 के विधानसभा चुनावों में दोनों को करारी हार का सामना करना पड़ा। शिवसेना (यूबीटी) ने महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) गठबंधन को हराने में नाकाम रही। वहीं, मनसे का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा। इस हार ने दोनों को यह सोचने पर मजबूर किया कि अगर उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में अपना प्रभाव फिर से स्थापित करना है, तो शायद साथ आना ही एकमात्र रास्ता है।
इस साल की शुरुआत से ही दोनों के बीच बढ़ती नज़दीकी साफ दिख रही है। जुलाई में दोनों ने त्रिभाषा नीति के खिलाफ एक साझा मंच साझा किया, और बाद में राज ठाकरे ने उद्धव को उनके जन्मदिन पर बधाई देने के लिए ‘मातोश्री’ का दौरा किया। ये छोटी-छोटी घटनाएँ बड़े राजनीतिक बदलाव का संकेत हैं। यह दर्शाता है कि निजी और राजनीतिक दुश्मनी को भुलाकर अब दोनों एक साझा दुश्मन के खिलाफ खड़े होने की तैयारी कर रहे हैं, और वह दुश्मन कोई और नहीं बल्कि भाजपा है।
भाजपा की प्रतिक्रिया और रणनीति
ठाकरे भाइयों की इस बढ़ती नज़दीकी पर भाजपा की प्रतिक्रिया भी काफी दिलचस्प रही। भाजपा इसे केवल एक ‘पारिवारिक मुलाकात’ बताकर इसका महत्व कम करने की कोशिश कर रही है। भाजपा मुंबई इकाई के अध्यक्ष अमित साटम का बयान इस रणनीति को स्पष्ट करता है, जहाँ उन्होंने विकास को मुद्दा बनाया। उनका कहना है कि ‘मुंबईकर’ विकास के नाम पर वोट देंगे, न कि भावनात्मक रिश्तों पर। भाजपा इस संभावित गठबंधन को हल्के में नहीं ले रही है और वह इसे ‘विकास बनाम भावनात्मक राजनीति’ के चश्मे से दिखाना चाहती है।
भाजपा अच्छी तरह जानती है कि अगर उद्धव और राज साथ आते हैं, तो यह सीधे तौर पर मुंबई और आसपास के क्षेत्रों में उसके वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है। शिवसेना और मनसे दोनों का आधार ‘मराठी मानुष’ की राजनीति पर टिका है। अगर ये दोनों दल एक साथ आ जाते हैं, तो मराठी वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा एकजुट हो सकता है, जो भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगा। खासकर बीएमसी चुनाव में, जहाँ वर्षों तक शिवसेना का दबदबा रहा है, यह गठबंधन भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है।

चुनावी समीकरण और चुनौतियाँ
संभावित गठबंधन के सामने चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। हाल ही में बेस्ट एम्प्लॉइज कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी लिमिटेड के चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे समर्थित पैनल की हार ने यह साफ कर दिया है कि केवल गठबंधन की चर्चाओं से काम नहीं चलेगा। ज़मीन पर ठोस रणनीति और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बिठाना ज़रूरी होगा। यह हार दोनों पार्टियों के लिए एक वेक-अप कॉल है।
इसके अलावा, विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में उद्धव ठाकरे पहले से ही एक अहम हिस्सा हैं। ऐसे में राज ठाकरे का सीधे तौर पर इस गठबंधन में शामिल होना मुश्किल लगता है। लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों में, खासकर बीएमसी में, दोनों दल सीट शेयरिंग का फॉर्मूला अपना सकते हैं। यह फॉर्मूला ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ उद्धव के संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है।
यह भी एक सवाल है कि क्या यह गठबंधन स्थायी होगा या केवल चुनावी फायदे के लिए है। अतीत में भी राजनीतिक गठबंधन बनते और टूटते रहे हैं। हालाँकि, वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह गठबंधन दोनों के लिए अस्तित्व की लड़ाई है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की लगातार हो रही ये मुलाकातें महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकती हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह मेल सिर्फ चुनावी रणनीति तक सीमित रहेगा या फिर महाराष्ट्र की सत्ता का समीकरण बदलने में कामयाब होगा।

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