
डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद वैश्विक राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। भारत के लिए यह समय विशेष रूप से सतर्कता बरतने का है, क्योंकि ट्रंप प्रशासन की नीतियां अब भारत के हितों के विपरीत दिखाई दे रही हैं। एक समय जो अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद का पोषक मानता था, वही अब उसे सहयोगी बताकर भारत की चिंताओं को नजरअंदाज कर रहा है।
भारत विरोधी रुख और पाकिस्तान से नजदीकियां
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान को आतंकियों का संरक्षक बताया था, लेकिन अब वे उसी पाकिस्तान की पैरवी कर रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में सैन्य कार्रवाई की थी, जिसमें 26 निर्दोष लोगों को मजहब पूछकर मारा गया था। यह हमला भारत को अस्थिर करने की साजिश थी। इसके एक सप्ताह के भीतर ट्रंप परिवार की कंपनी ने पाकिस्तान से क्रिप्टो करेंसी का समझौता कर लिया, जिससे उनके रुख पर सवाल उठने लगे।
इसके बाद ट्रंप ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम सुनीर को अमेरिका बुलाकर उनकी प्रशंसा की, जबकि यही सेना ओसामा बिन लादेन को शरण देने और तालिबान को समर्थन देने के लिए जिम्मेदार रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को भी ‘ग्रेट’ बताया, जबकि उसी समय पाकिस्तानी सेना अपने ही नागरिकों पर बम बरसा रही थी।

भारत के उभार से असहज अमेरिका
ट्रंप का रवैया यह दर्शाता है कि वे अमेरिका के समक्ष किसी अन्य देश को सशक्त होते नहीं देखना चाहते। चीन के बाद भारत का अंतरराष्ट्रीय कद बढ़ा है, जिससे ट्रंप और अमेरिकी डीप स्टेट दोनों चिंतित हैं। प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक छवि और आत्मनिर्भर भारत की मुहिम अमेरिका के लिए चुनौती बन गई है। डीप स्टेट अपने एजेंडे के अनुसार काम करता है और किसी भी उभरते देश को अस्थिर करने की कोशिश करता है।
पड़ोसी देशों में अस्थिरता की साजिश
भारत के पड़ोसी देशों में हालिया घटनाएं इसी रणनीति का हिस्सा लगती हैं। बांग्लादेश में शेख हसीना को सत्ता से बाहर किया गया और नेपाल में भी अशांति फैलाई गई। अमेरिका यात्रा के दौरान बांग्लादेश के अंतरिम शासक मौहम्मद यूनुस ने भारत विरोधी बयान दिए और पाकिस्तान से संबंध मजबूत किए, जबकि पाकिस्तान ने ही बांग्लादेश में नरसंहार किया था। अमेरिका इन घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए है।
आर्थिक मोर्चे पर भारत को निशाना
ट्रंप ने भारतीय वस्तुओं पर 50% टैरिफ लगाया और एच-1 बी वीजा की फीस में अप्रत्याशित वृद्धि की, जिससे भारतीय पेशेवरों को नुकसान हुआ। इसके अलावा, ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत की भूमिका को बाधित करने की कोशिश भी की गई। ये सभी कदम भारत की आर्थिक और रणनीतिक स्थिति को कमजोर करने की दिशा में उठाए गए हैं।
मोदी का आत्मनिर्भर भारत का संकल्प
प्रधानमंत्री मोदी ने इन परिस्थितियों को भांपते हुए आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी है। वे बार-बार कह रहे हैं कि भारत को अपने बलबूते आगे बढ़ना होगा और 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना है। स्वदेशी उत्पादों और तकनीकी नवाचार पर जोर देकर भारत वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है।
आंतरिक अस्थिरता की आशंका
नेपाल की घटनाओं के बाद भारत में भी कुछ विपक्षी दल अस्थिरता की आशंका जता रहे हैं। राहुल गांधी ने संविधान की रक्षा की बात कही और लेह में हुई हिंसा को युवाओं के आक्रोश का परिणाम बताया। जबकि गृह मंत्रालय के साथ वार्ता तय थी, फिर भी हिंसा होना कई सवाल खड़े करता है। ऐसी घटनाएं देश को कमजोर करने वाली ताकतों को बढ़ावा देती हैं।

आर्थिक मजबूती ही सुरक्षा की कुंजी
भारत आज अमेरिका जैसी ताकतों का सामना इसलिए कर पा रहा है, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे इस मजबूती को और बढ़ाएं और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दें। बाहरी और अंदरूनी दोनों प्रकार की ताकतों से सतर्क रहना जरूरी है।
जनता और विपक्ष की जिम्मेदारी
देश की जनता के साथ विपक्षी दलों को भी सतर्कता दिखानी होगी। यदि किसी साजिश या उकसावे से देश में अशांति फैली, तो भारत अपने लक्ष्य से भटक सकता है। यह वह समय है जब भारत विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर है और पूरी दुनिया उसकी ओर देख रही है।
भारत को अमेरिका की बदलती नीतियों और ट्रंप प्रशासन के रुख से सतर्क रहना होगा। यह समय है जब भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा—आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर। तभी भारत न केवल चुनौतियों का सामना कर पाएगा, बल्कि उन्हें अवसरों में बदलकर विश्व मंच पर अपनी पहचान और मजबूत कर सकेगा।

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