
राजनीतिक गलियारे में तेजस्वी यादव को लेकर बड़ी हलचल उस वक्त पैदा हो गई, जब उनके मामा और पूर्व सांसद साधु यादव ने उन्हें सार्वजनिक मंच से सख्त सलाह दे डाली। साधु यादव ने कहा कि अगर तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, तो उन्हें कुछ मौजूदा सहयोगियों से दूरी बनानी होगी और जनता के बीच अपनी सक्रियता और पकड़ मजबूत करनी होगी।
तेजस्वी को मिली रणनीतिक सलाह
साधु यादव ने स्पष्ट तौर पर कहा कि राजद का वोट शेयर 33% के करीब है, जो उनकी नजर में “विश्वसनीय” आधार है। अगर तेजस्वी यादव इसे 38% तक पहुंचा लें, तो राजद अकेले सरकार बना सकती है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर एनडीए 40-41% वोट हासिल कर लेता है, तो सत्ता में उनकी वापसी तय है।
इस बयान के राजनीतिक मायने यह हैं कि राजद के वोट बैंक में इजाफा तभी संभव है, जब सहयोगी दलों का चयन विवेकपूर्ण तरीके से हो। तेजस्वी पर परोक्ष रूप से यह संकेत भी है कि कुछ मौजूदा सहयोगी दल या नेता जनता की नजर में अप्रिय हैं और उनसे दूरी बनाना राजनीतिक दृष्टि से फायदेमंद हो सकता है।
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर विपक्ष से असहमति
बिहार में चल रही वोटर लिस्ट की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (SIR) को लेकर जहां विपक्ष लगातार चुनाव आयोग पर हमलावर है, वहीं साधु यादव ने इस प्रक्रिया को सही ठहराया है। उन्होंने कहा–
“यह चुनाव आयोग की नीति के तहत हो रहा है। 2003 की वोटर लिस्ट को आधार मानकर कार्य हो रहा है। जिनके पास सही दस्तावेज हैं, उनके नाम सूची से नहीं हटाए जाएंगे। जिनके नाम कटे हैं, वे प्रमाण देकर नाम वापस जुड़वा सकते हैं।”
उन्होंने इस बात का भी समर्थन किया कि बाहरी या अवैध मतदाताओं को सूची से हटाना जरूरी है, ताकि चुनाव निष्पक्ष हों। प्रवासी मजदूरों के नाम कटने पर भी उन्होंने इसे गलत नहीं माना, यह कहते हुए कि “सिर्फ वैध मतदाता ही सूची में रहने चाहिए।”

नीतीश कुमार की सेहत पर फिर निशाना
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत पर भी साधु यादव ने तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा,
“नीतीश कुमार अब अचेत अवस्था में हैं। दवाइयों के असर पर ही वे सक्रिय रहते हैं और जैसे ही असर खत्म होता है, वे फिर अचेत हो जाते हैं।”
यह आरोप तेजस्वी यादव की उस टिप्पणी की पुनरावृत्ति है, जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार को “थका हुआ मुख्यमंत्री” करार दिया था। अब जब उनके मामा ने भी इसी लाइन को दोहराया है, तो यह आने वाले चुनाव में नीतीश के खिलाफ विपक्षी प्रचार का अहम हिस्सा बन सकता है।
विपक्ष के अंदरूनी मतभेद या रणनीतिक दबाव?
साधु यादव के बयान को केवल पारिवारिक सलाह मानना राजनीतिक रूप से गलत होगा। यह वक्तव्य राजद और उसके सहयोगियों को संकेत देता है कि सत्ता तक पहुंचने के लिए नेतृत्व को कठोर निर्णय लेने होंगे, जिनमें सहयोगियों की भूमिका पर पुनर्विचार शामिल है।
मामा साधु यादव की यह सलाह तेजस्वी यादव के लिए एक राजनीतिक दिशा संकेतक की तरह है। बिहार की राजनीति में सहयोगियों की भूमिका, मतदाता सूची की पारदर्शिता और सत्ता की संभावनाओं को लेकर जो विमर्श खड़ा हुआ है, वह आने वाले 2025 विधानसभा चुनावों की रणनीति की नींव भी बन सकता है।

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