
उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनावों में अभी 16 महीने का समय बाकी है, लेकिन सियासी दलों ने अभी से जातीय समीकरणों को साधने की कवायद शुरू कर दी है। राजनीतिक मंचों से भले ही लोक कल्याणकारी योजनाओं की बातें हो रही हों, लेकिन पर्दे के पीछे हर पार्टी जातीय जोड़-घटाना करने में जुट गई है। विपक्षी दल हो या सत्ताधारी भाजपा और उसके सहयोगी, सभी अपने-अपने जातीय वोट बैंक को मजबूत करने में लगे हैं। यह कवायद यह दिखाती है कि यूपी की राजनीति में जातीय समीकरण आज भी सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं।
विपक्षी दल भी जातीय गुणा-गणित में
समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपनी रणनीति को ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) पर केंद्रित किया है। पार्टी जिलों-जिलों में ‘पीडीए’ सम्मेलन आयोजित कर रही है ताकि इन समुदायों को अपने साथ जोड़ा जा सके। कांग्रेस भी पीछे नहीं है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता मनीष हिन्दवी ने बताया कि पार्टी ‘संगठन सजन’ के तहत यह सुनिश्चित कर रही है कि संगठन में 60% हिस्सेदारी दलितों, मुस्लिमों और अन्य पिछड़ों की हो। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने ओबीसी एडवाइजरी काउंसिल भी गठित की है और हाल ही में ‘भागीदारी न्याय सम्मेलन’ का आयोजन किया गया था। इन कदमों से यह साफ है कि कांग्रेस भी जातीय समीकरणों को साधकर अपनी खोई हुई जमीन वापस पाना चाहती है।

भाजपा में भी अंदरूनी जातीय खींचतान
सत्ताधारी भाजपा में भी जातीय जोड़-घटाना जोरों पर है। प्रदेश अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया में देरी ने विभिन्न जातीय गुटों को अपनी दावेदारी पेश करने का मौका दे दिया है। हाल ही में, अलग-अलग जातियों ने बड़े-बड़े सम्मेलन आयोजित कर अपनी ताकत दिखाई है।
लोध समुदाय: आंवला में भाजपा के कद्दावर नेता धर्मपाल सिंह के जरिए लोध सम्मेलन किया गया।
कुर्मी समुदाय: ‘सरदार पटेल बौद्धिक मंच’ के बैनर तले लखनऊ में एक बड़ा सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में अपना दल (एस) के नेता आशीष पटेल की मौजूदगी ने इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया।
ठाकुर (क्षत्रिय) समुदाय: क्षत्रिय विधायकों ने भी लखनऊ में ‘कुटुंब सम्मेलन’ कर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। इस सम्मेलन में सपा से निष्कासित विधायक अभय सिंह और राकेश सिंह की उपस्थिति ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी।
सहयोगी दलों की दबाव की राजनीति
भाजपा के सहयोगी दल भी अपनी-अपनी जातियों के हितों को साधने में लगे हैं। निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने दिल्ली में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित कर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को संदेश देने की कोशिश की है कि उनकी अति पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा देने की पुरानी मांग पर ध्यान दिया जाए। यह कदम निषाद पार्टी की दबाव की राजनीति को दर्शाता है।
राजनीतिक विश्लेषक अरुण कुमार गुप्ता का कहना है कि छोटे दलों की यह कवायद विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाने और सत्तारूढ़ दल व विपक्ष से अधिक तवज्जो पाने की सौदेबाजी के रूप में देखी जा सकती है। वहीं, सत्तारूढ़ दल के भीतर विभिन्न धड़ों की यह सक्रियता प्रदेश अध्यक्ष के चयन को लेकर भी तेज हो गई है।

‘हिन्दू गौरव दिवस’ का राजनीतिक संदेश
अलीगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की पुण्यतिथि पर ‘हिंदू गौरव दिवस’ के रूप में एक बड़ा श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया गया। भले ही यह कार्यक्रम हर साल होता है, लेकिन आगामी चुनावों को देखते हुए इसे एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। यह आयोजन एक तरफ जहां हिंदुत्व के एजेंडे को मजबूत करता है, वहीं लोध समुदाय को साधने की भी कोशिश है।
कुल मिलाकर, यूपी में जातीय राजनीति फिर से अपने चरम पर है। सभी दल यह जानते हैं कि सत्ता तक पहुंचने का रास्ता जातीय समीकरणों को साधकर ही निकलेगा। ऐसे में आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा दल इस जातीय गुणा-गणित में बाजी मारता है।

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